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हममें से कितनों ने अपने जीवन के कार्यों में उसकी इच्छा पूरी की है। भगवान तो हर किसी हृदय की ओट में खड़े हैं। उनसे अपनी चरम शान्ति की प्रार्थना करो, अपने हृदय को, जीवन को उसकी उज्ज्वलता से भरने का आह्वान, अनुरोध करो।
मनुष्य की वासनाओं का कोई अन्त नहीं, हजार बार बुझाने की कोशिश हुई होगी, उसकी आग का अन्त नहीं । हमारे करुण रुदन की कोई सीमा नहीं। लालसाओं की थाह नहीं। मायाजाल बड़ा गहरा है। हर कोई इसे जीत सके, इससे मुक्त हो सके, ऐसा लगता नहीं। प्रभु से वह बल चाहो, जिससे तुम माया-मुक्त हो सको।
कबीर कहते हैं कि तेरा जन एकाध है कोई। प्रभु, तेरा तो एकाध है। ये हजारों लोग तम्हारे नहीं हैं । ये तुम्हारी अर्चना के लिए मंदिर-मस्जिद और गुरुद्वारे में नहीं जाते, ये तो फैक्ट्री के घाटे की पूर्ति के लिये प्रार्थना को लेकर जाते हैं। विपत्तियों से रक्षा हेतु पुकारते हैं, घर-गृहस्थी और मन के मकड़जाल में तुम्हें फांसते हैं। वो तो मुक्त है, सबका साक्षी है । उस परम स्वरूप को तुम्हारे इन प्रपंचों से कोई सरोकार नहीं । परमात्मा से परमात्मा की प्रार्थना करो । उससे उसी को चाहो । ये छिछली और छोटी-मोटी याचनाएँ व्यर्थ हैं । अपनी भुजाओं पर विश्वास रखो । भगवान ने तुम्हें बुद्धि दी है, तुम बुद्धि के द्वारा अपनी समस्याओं को सुलझा सकते हो । जो चीज अभी तक तुम्हें नहीं मिल पायी है, वह परमात्मा से मांगो। वह चीज होगी परमानंद की प्राप्ति, परमानंद की शान्ति, जीवन की मुक्ति । वह उससे मांगो।
__जब महावीर निर्वाण, मोक्ष और परमात्मा के बारे में जनमानस को उद्बोधन दे रहे थे, तो एक ब्राह्मण उनके पास पहुँचा और कहने लगा कि भंते, आप निर्वाण, महामोक्ष और महापद की इतनी प्रेरणा दे रहे हैं। अगर ये सारे लोग मुक्त हो गये, तो जायेंगे कहाँ ? वो सिद्धशिला या देवलोक कहाँ है, जहाँ जाकर ये मुक्त हो सकते हैं? क्या वहाँ भीड जमा नहीं होगी? महावीर मस्कराये और कहा-वत्स, तू जो बात कहता है, वह ठीक है । मैं तुम्हारे प्रश्न का जवाब कल दूंगा। मैं तुम्हें एक काम सौंपता हूँ । वह सोचने लगा कि ऐसा कौन-सा काम है, जो प्रभु मुझसे करवाना चाहते हैं । वह तो बड़ा ही प्रसन्न हुआ कि भगवान उसे कोई काम सौंप रहे हैं।
मुझमें है भगवान | 87
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