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रहता है । इसलिए अच्छा होगा कि तुम उसके आनन्द को जीओ। कुछ उसकी पुकार भी सुनो कि वह हमें क्या कहना चाहता है; वह हमें किस तरह से जीवित रखना चाहता है । हमें क्या-क्या प्रेरणा दे रहा है । यह पुकार भी सुनो । उसकी पुकार सुनने वाले कम होते हैं, अपना ही रोना रोने वाले लोग ज्यादा होते हैं। चूंकि अपना रोना रोने वाले अधिक होते हैं, इसलिए तत्त्वतः उसे सही तौर पर जान नहीं पाते, उसे उपलब्ध नहीं कर पाते । गीता का सूत्र है
मनुष्याणाम् सहस्रेषु, कश्चिद्यतति सिद्धये।
यततामपि सिद्धानां, कश्चिन्मां वेत्ति तत्त्वतः ।। कृष्ण कहते हैं कि हजारों मनुष्यों में से कोई एक ही मेरी प्राप्ति के लिए यत्न करता है । यत्न करने वालों में भी कोई एक ही होता है, जो मेरे पारायण होकर मुझको तत्त्वतः जानता है, मुझे उपलब्ध करता है।
कृष्ण सबको परमात्म-शरण की प्रेरणा देते हैं, लेकिन वे इस बात को जानते हैं कि इस महाभारत के प्रांगण में अर्जुन तो कोई एक ही है । अर्जुन तो कभी-कभी ही जन्म लेता है । महावीर के लाखों-लाख शिष्य रहे होंगे, लेकिन उन लाखों में गौतम-गणधर कोई एकाध ही रहा होगा। शिष्यों की जमात, अनुयायियों की तादाद तो बहुत बढ़ जाती है, लेकिन अर्जुन कोई-एक ही होता है । एक अर्जुन ही काफ़ी होता है गीता को जन्म देने के लिए, एक आनंद ही काफ़ी होता है बौद्ध धर्म को प्रसारित करने के लिए, एक हनुमान ही पर्याप्त है राम में रमने के लिए, एक मोहम्मद ही अपने समस्त पैग़म्बरों का प्रतिनिधित्व कर लेंगे और अल्लाह को करोड़ों-करोड़ों लोगों तक पहुंचा ही देंगे । समूह काम नहीं करता, काम अकेला करता है। अकेला, अकेला होकर भी अपने आप में एक संस्था होता है। जब एक अकेला व्यक्ति संस्था, समूह और समाज का पर्याय हो जाता है, तो एक हुजूम, एक समूह उसका अनुसरण करने को तैयार रहता है।
अपने लिए तो हर कोई जीता है, पर जो व्यक्ति जगत के लिए जीता है, वह मानवता का मसीहा हो जाता है । वही जगत का पोषक बनता है।
भजते तो परमात्मा को लाखों-लाख, हज़ारों-हजार लोग हैं. मगर कितने लोग ऐसे हैं, जिनका हृदय मंदिर बना हआ है ? जिन्होंने अपने अहंकार को आंखों के पानी में डुबाया है। जिनके शीश उसकी चरण-धूलि तक झुके हैं। आखिर
86 | जागो मेरे पार्थ
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