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महामूल्यवान उपलब्ध हो गया। जिसका विसर्जन होना था, वह चीज विसर्जित हो गई और जिसका सृजन होना था, वह चीज सृजित हो गई । माटी, माटी पर गिर पड़ी, मूल्य, मूल्य को उपलब्ध हो गया।
सच में परमात्मा बहुत स्वीकार करता है। उसका लाड़-प्यार, उसका वात्सल्य दिन-रात जितना बरसता है, उतना ही उसकी अपूर्व मस्ती, अपूर्व भाव, अपूर्व आनंद । समर्पण चाहिए, मिटने और मिटाने का साहस चाहिये । केवल सुख में ही नहीं, भयंकर महापीड़ा में भी उसका स्मरण जारी रहे । परमात्मा को लोग इसलिए याद करते हैं, ताकि वह हमारी फैक्ट्री और मिल में जो घाटे लग रहे हैं, उनकी पूर्ति कर दे या जो लोग तुम्हारी बदनामी करते हैं, उनका मुंह बंद कर दे। जो लोग तुम्हारी स्तुति करते हैं, वे और ज्यादा स्तुति करें, प्रशंसा करें । जबकि हम परमात्मा को इसलिए याद करें कि जैसे ही गलत मार्ग पर कदम उठे, हमारे जीवन में नैतिक सम्बल, नैतिक बल और आत्मबल उपलब्ध हो जाये, जिससे हम अपने आपको गलत मार्ग पर बढ़ने से रोक सकें, इसलिए हम भगवान को याद करें।
विपदाओं से रक्षा करने के लिए प्रार्थना ले कर भगवान के द्वार पर जाने की बजाय उससे यह वरदान चाहो कि विपदाओं से घबराएं नहीं । दुःखों से व्यथित हृदय को सांत्वना देने की भिक्षा मांगने की बजाय दुःखों पर विजय पाने का आशीष चाहो। मुझे बचा लें, यह प्रार्थना लेकर उसके दर पे जाने की बजाय संकटों के सागर में तैरते रहने की शक्ति मांगो। सुख भरे क्षणों में तो उसके प्रति नतमस्तक रहें ही, किन्तु दुःख भरी रातों में, जब ये दुनिया उपहास करने लगे, तो भी अडिग रहने का वरदान मांगो।
भगवान से मांगना ही है तो वह मांगो जिससे परवश न होना पड़े। स्वस्थ जीवन और स्वस्थ मृत्यु की प्रार्थना करो। शेष तो तुम्हारी अन्तरात्मा तुम्हें जैसा करने के लिए मंगल प्रेरणा दे रही हैं, उसे स्वीकार कर लो।
अन्तरात्मा की आवाज रोज़-ब-रोज़ व्यक्ति को सावधान करती है। जो अन्तर आत्मा की आवाज़ को सुनकर अपना जीवन संचालित करता है. उसका हर मार्ग सहज मार्ग होता है । जो अपनी अन्तरात्मा की आवाज़ को ठुकरा देता है, उसका मार्ग, उसका जीवन तनावग्रस्त, संत्रासग्रस्त, विपदाओं से घिरा हुआ
मुझमें है भगवान | 85
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