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मुझमें है भगवान
हमारा जीवन हमारे लिए प्रकृति और परमात्मा की एक महान् सौगात है । धरती पर कोई भी अंश ऐसा नहीं है, जिसे परमात्मा और प्रकृति की देन से वंचित रखा जा सके । भगवान का नूर और प्रकृति का प्राण धरती के हर ठौर, हर डगर, हर नगर में है । जहाँ-जहाँ जीवन है, वहाँ-वहाँ चेतना है और जहाँ-जहाँ चेतना है, वहाँ-वहाँ परमात्मा का वास है । जीवन का आधार प्रकृति है, तो जीवन का विकास परमात्मा है। हम स्वयं को परमात्मा से अलग नहीं कर सकते । परमात्मा तो हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है । जैसे पानी से मछली को अलग नहीं किया जा सकता, सूरज से उसकी किरणों को विच्छिन्न नहीं किया जा सकता, वैसे ही जीवन से परमात्मा को अलग करने का मतलब ही होता है कि जीवन का अब कोई अस्तित्व ही नहीं रहा।
__ ऐसी कोई ठौर भी तो नहीं है, जहाँ हम परमात्मा के नूर को नहीं देख सकें। ऐसा कोई भी स्थान नहीं है, जहाँ हम परमात्मा के अस्तित्व को अस्वीकार कर सकें। मनुष्य में देखो, तो उसमें परमात्मा है; अगर जानवरों में देखो, तो उनकी चेतना में भी परमात्मा का रूप है, कीट-पतंगों में भी परमात्मा है । अगर पक्षियों की आवाज सुनो, तो उसमें भी वेदों की ऋचाएँ और कुरआन की आयतें सुनने
80| जागो मेरे पार्थ
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