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श्रम-विमुख नहीं होना है, जब मैं यह कह रहा हूँ, तो मैं यह भी कहता हूँ कि कहीं ऐसा न हो कि हम अपनी मूल चेतना से संबंध तोड़ बैठे । दिन भर श्रम करो अपने जीवन के संचालन के लिए और जैसे ही सांझ ढलती है तुम अपने आपको चारों ओर से समेट लो, ठीक वैसे ही जैसे सांझ होते ही सूरज अपनी रश्मियों को समेट लेता है । कोई अगर मुझसे पूछे कि आप सूर्यास्त होते ही मौन क्यों ले लेते हैं ? तो इसका सीधा-सा उत्तर, छोटा-सा रहस्य इतना ही है कि दिन दुनिया को दिया, रात अपने लिये जीयेंगे। दिन में तो हर कोई जागा हुआ है । दिन में तुम जागे हए लोगों के साथ जागृत रहो, पर रात को निद्रा में भी समाधिस्थ बनो । सांझ होने पर चेतना की रश्मियाँ स्वयं में लौटने को आतुर होने लगती हैं । संध्या का मतलब ही है सम्यक् ध्यान । सांझ होने पर ध्यान में उतर आओ। संसार से मौन हो जाओ, घर में आत्मस्थ । एक मौन अपने अंतरंग में उतरने दो। महावीर प्रेरणा देते हैं प्रतिक्रमण की । लौटा लाओ अपने आपको चारों ओर से । अपनी मूल चेतना को अपने मूल स्त्रोतों की ओर ले आओ। हमारी चेतना दिनभर जिन-जिन के साथ रागमूलक, द्वेषमूलक, प्रेममूलक या वैरमूलक संबंधों को स्थापित करती रही है, उन सबसे अपनी चेतना को लौटा लाओ। तुम्हारे द्वारा भीतर के घर में लौट आने का नाम ही योग है, ध्यान है। __कृष्ण कहते हैं कि चित्त और इन्द्रियों की क्रियाओं को वश में रखते हुए मन को एकाग्र करके अन्तःकरण की शुद्धि के लिए अभ्यास करो । बिल्कुल सीधी सादी-सी विधि बताई है कि योग करो, योग का अभ्यास करो । योग क्यों किया जाये? तो ज़वाब होगा कि अंतःकरण की शुद्धि के लिए योग किया जाये । अगर चित्त विकृत अथवा उद्विग्न दिखाई देता है, तो अन्तःकरण की शुद्धि के लिए जो प्रयास होगा, उसी प्रयास का नाम योग होगा। अगर लगता है कि हमारा
अन्तःकरण बिल्कुल साफ़-सुथरा, निर्मल है, कोई क्रोध नहीं, कोई अहंकार या विकार नहीं, अन्तरमन शान्त-सौम्य है तो आपको योग की कोई जरूरत नहीं है। तब आपका मार्ग बिल्कुल साफ़-सुथरा, उज्ज्वल है । आपरोशनी को लेकर उत्पन्न हुए हैं और रोशनी को लेकर ही आगे बढ़ रहे हैं । सिंह बनकर पैदा हुए और सिंह बनकर ही जी रहे हैं । आप योगी हैं, शुकदेव हैं । इसके विपरीत यदि ऐसा लगता है कि जीवन में सघन तमस है, तो बहुत अच्छा होगा कि योग करें, क्योंकि बिना योग के अन्तःकरण की शद्धि संभव ही नहीं है। अन्तःकरण की शुद्धि का नाम
74 | जागो मेरे पार्थ
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