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________________ लोग गणित जानते हैं उनका मानना है कि वह मैट्रिक भी पास नहीं था। एक छोटे से दफ्तर में क्लर्की करता था। अचानक खबर फैलने लगी कि इस लिपिक की गणित की कुशलता अद्भुत है । किसी ने रामानुजम को सुझाव दिया कि कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के गणितज्ञ प्रो. हार्डी को लिखो। उसने हार्डी को चिट्ठी तो नहीं लिखी, लेकिन गणित के डेढ़ सौ प्रमेय बनाकर भेज दिये । हार्डी चकित था। उसने उसे कैम्ब्रिज बुलवाया। हार्डी खुद को रामानुजम के सामने बच्चा समझने लगा। बड़ी कठिनाई खड़ी हो गई कि जिस सवाल को हल करने में बड़े से बड़े गणितज्ञ को छह घंटे लगते थे, रामनुजम उसे छह मिनिट से भी कम समय में हल कर देता था। रामानुजम को टी.बी. हो गई थी। वह छत्तीस साल की उम्र में मर गया। वह अस्पताल में था। उसे देखने हार्डी अपने मित्रों के साथ गया। रामानुजम ने खिड़की से हार्डी की कार का नम्बर देखा और उसे कहा आपकी कार का नंबर बड़ा चमत्कारी है। उसने चार विशेषताएँ बताईं। रामानुजम के मरने के बाद हार्डी छह महीने में केवल तीन विशेषता सिद्ध कर पाया और एक हार्डी के मरने के बावीस साल बाद सिद्ध हो पाई। अमेरिका में 1945 में एडमर्ग कायसी की मौत हुई। मरने से पहले वह कौमा में चला गया। उसकी बेहोशी इतनी सघन थी कि डाक्टरों ने आशा छोड़ दी। डाक्टरों ने कहा कि इसका दिमाग डिसइंटसीग्रेट हो रहा है, विखण्डित हो रहा है। लेकिन अचानक कायसी की आवाज लौट आई और उसने कहा कि मेरी रीढ़ में पीछे चोट लगी है । इसी के कारण मैं बेहोश हूँ। अगर छह घंटे में मुझे ठीक नहीं किया गया तो मैं बच नहीं पाऊँगा, उसने कुछेक दवाइयों के नाम बताए । जिसके बारे में कायसी ने कभी पढ़ा भी नहीं होगा। इसे महावीर ने प्रतिक्रमण कहा है। एक होता है आक्रमण जो बाहर होता है। किसी पर होता है। एक होता है 'प्रतिक्रमण' । आक्रमण का विरुद्धार्थी अनाक्रमण नहीं होता, 'प्रतिक्रमण' होता है। इसका अर्थ होता है भीतर लौटना। योग भीतर लौटने का कौशल है। वैज्ञानिक कहते हैं 'रैपिड आई मूमेंट' । पुतली की अगति गहन निद्रा है। योग कहता है गहरी सुषुप्ति में हम वहीं पहुँच जाते हैं जहाँ समाधि होती है । फर्क इतना होता है कि सुषुप्ति का पता नहीं चलता, समाधि का पता चलता है । कृष्ण का योग एक विशिष्ट किस्म की खोज है रेजोनेंस की दिशा में भी, प्रतिध्वनि की 72 | जागो मेरे पार्थ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003890
Book TitleJago Mere Parth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2002
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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