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________________ . और तीसरा है यथार्थ सत्ता तक पहुँचने के बाद उसके साथ तादात्म्य स्थापित करना। कबीर ने अपनी भाषा को संध्या-भाषा कहा। संध्या का मतलब है धुंधला क्षण, दो स्थिति के बीच में । कबीर कहते हैं न हम सोए हुए बोल रहे हैं, न हम जागते हुए । हम बिल्कुल बोर्डरलैंड' से बोल रहे हैं । यह ‘बोर्डरलैंड' ही योग है। क्योंकि स्थिति और गति दोनों के लिए शरीर अनिवार्य है। शरीर के बिना न स्थिति हो सकती है, न गति । योग, स्थिति से गति और गति में स्थिति की यात्रा है। और इन दोनों में कोई टकराव भी नहीं है जैसे एक कमरे में संगीत भरा हुआ है और प्रकाश भी भरा हुआ है । प्रकाश की कोई तरंग संगीत की तरंग से टकराती नहीं है। ऐसा नहीं है कि संगीत की तरंग के लिए प्रकाश की तरंग को जगह खाली करनी पड़े, या प्रकाश की तरंग के लिए संगीत की तरंग को चले जाना पड़े। योग ऊर्जा के वर्तुल का प्रयोग है । विद्युत की भाषा में कहें तो विचारों का जो कोलाहल है, वह ऊर्जा के वर्तुल के न बनने की वजह से है। वर्तुल के बनते ही विचारों का कोलाहल समाप्त हो जाता है । तिब्बती मंदिर में घंटा नहीं रखते, लेकिन मंदिरों में घंटी होती है । अजंता का एक बौद्ध चैत्य है उसमें लगे पत्थर ठीक उतनी ही ध्वनि को तीव्रता से लौटा सकते हैं जितनी तीव्रता से तबला लौटाता है। आप तबले पर चोट करें वैसी ही पत्थर पर चोट करें आवाज एक-सी होती है । इसका कारण क्या है ? इसका कारण वही वर्तुल है । तिब्बती सर्वधातुओं का बना एक बर्तन रखते हैं, घड़े की तरह । उसमें एक लकड़ी का डंडा होता है । घुमाने के लिए। उसे सात बार घुमाकर चोट करते हैं । सात बार घुमाने पर और चोट करने पर 'मणिपोहूं, की ध्वनि निकलती है। और ध्वनि विद्युत का छोटा रूप है । 'साउण्ड इज द बेस' । इलेक्ट्रिसिटी बेस नहीं है। योग और कृष्ण का योग भी ध्वनि को आधार मानता है । इसलिए पश्चिम के लोगों ने जब भारत के मंदिर देखे तो वे उन्हें 'अनहाईजेनिक' लगे थे। लेकिन आज कोई नहीं कहता है कि मंदिर 'अनहाईजेनिक' है । महावीर ने भी इस आर्किटेक्चर को समझा था। सन् 1828 में दक्षिण के एक छोटे परिवार में रामानुजम का जन्म हुआ था। बिना किसी विशेष शिक्षा के रामानुजम की गणित की शिक्षा अद्भुत थी । जो निज से मंगल मैत्री। 71 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003890
Book TitleJago Mere Parth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2002
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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