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घाव की तरह बात मन में चुभती रही।
कहते हैं सपनों में कभी-कभी भिक्षु आया करता था। जब-तब उसे भिक्षु की याद पकड़ लेती। ऐसे कई वर्ष बीत गये। उसे कोढ़ हो गया। उसका शरीर गलने लगा। लोगों ने उसे गाँव से बाहर रख दिया। एक दिन वह गाँव से बाहर प्यास से तड़प रही थी। तप्त गर्मी के बीच वह पानी के लिए आवाज लगा रही थी। जिसने उम्र भर सोने के पात्रों में पानी पीया हो उसे कोई मिट्टी के सकोरे में पानी देने को तैयार नहीं था। तभी उसने देखा किसी का हाथ उसके माथे पर आया। उसने पानी पीया फिर पूछा कि तुम कौन हो । भिक्षु ने कहा-मैं आ गया हूँ । तीस वर्ष पहले तुमने मुझे बुलाया था, तब मेरी कोई जरूरत न थी, मगर आज मैं ही तुम्हें पहचान सकता हूँ। तुम्हारे हड्डी-माँस-मज्जा से मेरा नाता नहीं है। तुम्हारी आत्मा को मैं पहचानता हूँ। तुम्हारे प्रेम का निवेदन मेरे पास है । तुम अपनी रुग्ण काया मुझे सौंप दो । कहते हैं वह वेश्या उस रात जिस आनन्द और शांति से मृत्यु को प्राप्त हुई वैसा सौभाग्य कभी-कभी किसी-किसी को मिलता
तुम धूल की भी निन्दा मत करो । खाक के बराबर कोई चीज नहीं है । धूल बड़ी अनूठी है । जब तुम जिन्दा हो तो तुम्हारे पैर के नीचे और जब मर जाते हो तो तुम्हारे ऊपर छा जाती है। मगर हमारी दिक्कत यह है कि हम जानकर भी अनजान रहते हैं।
इब्राहीम की फकीर होने से पहले की कहानी बड़ी अद्भुत है। इब्राहीम सम्राट था एक दिन वह अपने सिंहासन पर बैठा था, उसके दरवाजे पर एक फकीर झगड़ा करने लगा। वह दरबान से कह रहा था कि मुझे रास्ता दो, जाने दो अन्दर, मुझे रोकने वाला कौन है । मुझे इस सराय में आज की रात विश्राम करने दो। आज की रात मैं इसी सराय में रुकूँगा।
झगड़ा बढ़ा। पहरेदार ने फकीर से कहा कि वह सराय नहीं है राजा का महल है। उसने कहा, तुम्हें पता नहीं, यह सराय है । पहरेदार भी कभी माने हैं? उसने कहा कि मैं यहीं नौकरी करता हूँ । मुझे पक्का मालूम है कि वह राजा का महल है । यह हुज्जत इब्राहीम तक पहुँची । इब्राहीम ने पूछा, माजरा क्या है । पहरेदार ने कहा कि यह कोई पागल है, महल को सराय बता रहा है। उसने इब्राहीम से कहा अच्छा यह बताओ कुछ साल पहले जो यहाँ बैठते थे, कहाँ गए।
निज से मंगल मैत्री | 69
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