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साबार ऊपर मानुष सत्य,
ताहार ऊपर नाहीं। मनुष्य का सत्य सबसे ऊपर है । ताहार ऊपर नाहीं । उससे बड़ा सत्य और नहीं। हम मनुष्य हैं, हमारे लिए यह गौरव की बात है । भले ही पहले सतयुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग रहे हों, लेकिन हम अपने युग को हीन और दरिद्र नहीं कह सकते । हम जिस युग में पैदा हुए हैं, हमारे लिए तो वही सबसे सुन्दर, सबसे सही और सबसे ज्यादा समायोजित होने वाला युग है । हम अपने युग को कलियुग कहकर समय की उपेक्षा नहीं करेंगे। हम वर्तमान के द्रष्टा हैं । अपने वर्तमान को हम समय का निकृष्ट रूप नहीं कह सकते । कलयुगी व्यक्ति तो वह कहलाता है, जो सोया हुआ है, मूर्छित है । वह व्यक्ति हमेशा सतयुगी ही कहलायेगा, जिसकी चेतना में जागरण का शंखनाद हो चुका है । सुषुप्त चेतना ही कलयुगी है और जागृत-चेतना ही सतयुगी का पर्याय है। ___हम मनुष्य हैं, हमारे लिए इससे बड़ी और गौरव की बात क्या होगी । जिन धर्मशास्त्रों की हम पूजा करते हैं, वे धर्मशास्त्र कहते हैं लाखों-लाख जीव-योनियाँ हैं और मनुष्य उन जीव-योनियों में एक योनि है । यह वह जीव-योनि है, जिसके सामने सारी जीव-योनियाँ निर्मूल्य हो जाती हैं। यदि एक मनुष्य, मनुष्य होकर अपने आप में गौरवान्वित नहीं होता, तो मैं नहीं जानता कि उस मनुष्य को मनुष्य कहा जाए । मनुष्य, मनुष्य है, यही उसके लिए काफी है। मनुष्यत्व में मनुष्य की आत्मा समाविष्ट है । मनुष्य स्वयं अपना कर्णधार है । अपने देवत्व का भी वही आधार है और अपने जहन्नुम का भी वही सूत्रधार है । मनुष्य के एक ओर जन्नत है, दूसरी ओर नरक है । मुस्कुराता मनुष्य जन्नत है, आग उगलतां मनुष्य नरक है। धरती पर आज जैसा भी तुम्हें रूप देखने को मिलता है, वह सब मनुष्य की ही कृति है । अगर अच्छा देखने को मिलता है, तो भी और बुरा-बदरूप देखने को मिलता है, तो भी; दोनों का श्रेय मनुष्य को ही है । मन्दिर मनुष्य के अन्तरमन में रहने वाली प्रभूता का प्रतिबिम्ब है। वहीं जानवर उसके मन में रहने वाली पशुता का साकार रूप है । मनुष्य ही आधार है, अपने ह्रास-विकास का । हर रूप उसी का प्रतिबिम्ब है।
जीवन के दो ढंग होते हैं-एक तो वैसे ही बहता चला जाए, नतीजा कुछ भी न निकले, पहुँचना कहीं न हो, कोई मंजिल न मिले। और एक जीवन किसी
64 | जागो मेरे पार्थ
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