SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निज से मंगल मैत्री मनुष्य का सत्य सर्वोपरि है, संसार के सारे सत्यों में सबसे अनेरा सत्य । सत्य के नाम पर अन्य जितनी भी स्थापनाएँ हुई हैं, उन सब का संबंध मनुष्य के साथ है । स्वर्ग की अगर संरचना हुई है, तो वह भी मनुष्य की देन है और नरक की अवधारणा है, तो वह भी मनुष्य का ही प्रतिदान है। परमात्मा तक भी मनुष्य की ही पराकाष्ठा का नाम है । हाँ, अगर सृष्टि को परमात्मा का कर्तृत्व समझें, तो मनुष्य इस कर्तृत्व की श्रेष्ठतम कृति है । मनुष्य के अन्तःकरण में ही देवत्व, पशुत्व और प्रभुत्व तक के बसेरे हैं। मनुष्य का कोई अपवाद नहीं है, वह सब अपवादों का अपवाद है। जीवन के उतार-चढ़ाव, सारे मूल्य, यथार्थ और सारे आदर्श मनुष्य से संबद्ध हैं। मनुष्य को जितनी ज्यादा गरिमा दी जा सके, दी जानी चाहिये । जब एक मनुष्य, मनुष्य की ही बात करता है, तो एक मनुष्य के लिए मनुष्य से बढ़कर और कोई भी आदर्श नहीं हो सकता। हम अपने अतीत में चाहे देवत्व के दीप से अभिमंडित रहे हों या नरक की कारगुजारियों से गुजरते रहे हों, हम अपने अतीत की चर्चा नहीं करेंगे। हमारा वर्तमान मनुष्यत्व का है । हमारे लिए यह काफी है। हमारा अतीत और भविष्य, चाहे वह देवत्व का हो, पशुत्व का या प्रभुत्व का, उसमें सच्चाइयाँ कम, सत्य के नाम पर कल्पनाओं के चित्र कहीं ज्यादा खींचे गये हैं। निज से मंगल मैत्री | 63 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003890
Book TitleJago Mere Parth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2002
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy