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अनासक्ति का विज्ञान
सारा जगत एक कारागार है और सभी इस कारागार में कैद हैं। जगत के इस कारागार का कोई विकल्प मनुष्य की अन्तर्-आत्मा में आज प्रतिष्ठित नहीं है । ऐसा कौन आदमी है, जो यह अस्वीकार कर सके कि मैं कारागार से मुक्त नहीं हूँ । हम कारागार में कैद हैं- केवल इस बात के लिए आंसू ढुलकाने से कुछ नहीं होगा । इस कारागार से मुक्त होने के लिये हमें कुछ पुख्ता इंतजाम करने होंगे। कुछ लोग तो ऐसे हैं, जिन्हें इस बात का बोध है कि वे कारागार में कैद हैं । वे इससे मुक्त होने के लिए प्रयास भी करते हैं । कुछ लोग ऐसे हैं, जो कारागार में कैद हैं और इसकी उन्हें पीड़ा भी है, लेकिन इससे मुक्त होने का कोई प्रयास नहीं है । तीसरी किस्म के लोग वे हैं, जिन्हें इस बात का अहसास ही नहीं कि वे कारागार में हैं ।
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उनके लिए कारागार मानो अपना घर है। जो अपनी मुक्ति के लिए प्रयास कर रहे हैं, वे बाहर से भी जागृत हैं और भीतर से भी उनकी चेतना जगी हुई है । जिनको आपने कारागार में होने की केवल पीड़ा है, वे बाहर से जागृत भले ही हो गये हों, लेकिन भीतर से वे मूर्च्छित हैं । जिन्हें न तो बोध है कि उनके पाँवों में जंजीरें हैं और न ही उन जंजीरों से मुक्त होने का अभियान है, वे बाहर से भी मूर्च्छित हैं और भीतर से भी संमूर्च्छित हैं।
52 | जागो मेरे पार्थ
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