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देंगी। फिर आदमी, आदमी की ही उपेक्षा करेगा। मान लो तुम अनुकूल स्थिति में हो, समृद्ध हो और कोई जरूरतमंद तुम्हारे द्वार पर आये और तुम उसे खाली हाथ लौटा देते हो, तो इससे तुम्हारी कीर्ति में श्रीवृद्धि होने वाली नहीं है । यदि तुम्हारे जीवन में प्रतिकूलताएँ हैं तो भगवान या भाग्य को मत कोसिये । प्रभु ने जितना दिया है, उसी में संतुष्ट रहिये और उसके प्रति कृतज्ञता प्रकट कीजिए कि आपको इतना दिया। दोनों ही परिस्थितियों में अपने आपको मस्त रखो। सम
और असम हर परिस्थिति में मन की प्रसन्नता बनाये रखना जीवन की सम्यक् तपस्या है।
__ अन्तिम चरण के रूप में यह सूत्र स्वीकार करो कि जो होता है, अच्छे के लिये होता है, तो आज नहीं तो कल उसका सुखद परिणाम हमारे सामने होगा। जैसे मेहंदी लगाई जाती है और मेहंदी लगाने के बाद उसका सुर्ख रंग उभरता है, ऐसे ही सुकून, ऐसे ही सुख हम सब लोगों को मिलेगा । आज कुछ बातें आप लोगों को निवेदन की हैं। जीवन में इनको ध्यान में लाएं । इनके अनुसार अगर जी सको, तो कृष्ण के ये सूत्र सार्थक हो जायेंगे। श्रीकृष्ण की गीता हम सबकी गीता हो जाएगी।
मुक्ति का माधुर्य | 51
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