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लिया। उसने शाम को अपने पिता से पूछा कि अब्बाजान, इस तरह से दोस्तों का खत आया है। क्या मैं चला जाऊं? पिता ने कहा-बेटे, मैं कल सुबह इसका जवाब दूंगा। अगली सुबह जब वह रवाना होने लगा, तो पिता ने कहा-बेटे, तू जा भले ही, लेकिन जाने से पहले एक सवाल का जवाब देता जा । मैं तुमसे इतना पूछना चाहता हूँ कि तुम्हें पाकिस्तान में यहाँ से कई गुना ज्यादा पैसे मिलेंगे। क्या यहां तीस रुपये देने वाले खुदा में और वहां तीन हजार रुपये देने वाले खुदा में कोई फ़र्क है?
पिता का यह प्रश्न सुनकर बेटे ने कंधे से थैला उतारकर रख दिया। उस आदमी ने बताया कि आज उसके पास सौ-सौ आदमी काम कर रहे हैं । अल्लाह सब जगह एक ही है, क्यों भागमभाग मचा रहे हो । जो भगवान वहाँ तुम्हारा पेट भरेगा, वह यहाँ भी भर देगा। वह सबको उसके भाग्य का देता है । चाहे कृष्ण हो,राम हो या रहीम हो-सब एक ही रूप हैं, सब एक ही बात कह रहे हैं । परमात्मा का हर स्वरूप हम सब लोगों को मुक्त देखना चाहता है । वह स्वरूप ऐसा प्रेम देना चाहता है, जिसे हम देहातीत होकर जी सकें । ऐसी शान्ति, जिसे आप धन और जायदाद से ऊपर उठकर जी सकें; ऐसा माधुर्य, जिसका आप पति-पत्नी के प्रेम से ऊपर उठकर रसास्वादन कर सकें; ऐसा आनन्द, जो केवल आपके हृदय के अंतर्-तारों से झंकृत और निनादित हो, हमें वह परमात्मा भेंट करना चाहता है। आप पा लो, तो आपका सौभाग्य और न भी मिल पाये तो दीपक तो जलेगा, फूल तो सुवासित होगा। गीता और आगम, पिटक और सूत्र, ऋचाएँ और मंत्र तब भी बरकरार रहेंगे। आदमी जब तक इन सूत्रों को, इन श्लोकों को अपने जीवन में समाचरित करता रहेगा, तब तक ये जीवित रहेंगे और पथ-प्रदर्शन करते रहेंगे। इसी में इनकी सार्थकता निहित है। .
गीता के सूत्र जीवन के सूत्र बनें, तो ही गीता जीवन का गीत बन पायेगी, अपनी सार्थकता को सौ टंच सिद्ध कर पाएगी। गीता युद्ध की प्रेरणा देकर भी, मानवता को मोक्ष की ही प्रेरणा देती है । विषादग्रस्त अर्जुन को बोध देने की जो शुरुआत होती है, वह नपुंसकता के त्याग से है, श्रम और सृजन की नींव रोपने से है, पर गीता की पूर्णाहुति तो मोक्ष-संन्यास में ही है । आज का सूत्र है
यदृच्छालाभ संतुष्टौ, द्वन्द्वातीतो विमत्सरः। समः सिद्धावसिद्धौ च, कृत्वापि न निबध्यते ।।
मुक्ति का माधुर्य | 45
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