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अगर बेइमानी करके आदमी को धन मिलता है, तो आदमी की पहली नीति ही बेइमानी होती है। ईमान से धन मिले, तो आदमी की नीति ईमानदारी की होगी।
__ आदमी को तो बस पैसा चाहिये, चाहे वह जिस तरीके से मिले । आदमी को कोरा रंग चाहिये, भले भीतर से वह कितना काला ही क्यों न हो । हिन्दुस्तान की तरक्की त्याग के कारण हई है, गुणवत्ता के कारण हई है और पतन के जो आसार नज़र आ रहे हैं, उसके मूल में चमड़ी और दमड़ी को महत्त्व दिया जाना ही है । हिन्दुस्तान के हाथ से वह नैतिकता, वह सादगी, वह प्रामाणिकता चली गई है, जो कभी इस देश की आत्मा हुआ करती थी।
मुझे नहीं लगता कि हममें आत्मा जैसी कोई चीज है । हमारी आत्मा तो खो-सी गई है । धर्म को भी हमने खो दिया है, तभी तो धर्म ने भी हमें खो दिया है। परमात्मा से हम दूर हुए, तो परमात्मा हमसे दूर हो गया। हम अपने हाथ उस ओर उठायें, तो वह अपने हाथ आगे बढ़ाने को तैयार है । तुम अपना उल्टा घड़ा सीधा करो और सागर की ओर उसे दबाव दो, तो मंगल कलश स्वतः भरेगा। आत्मा नतमस्तक विनम्र है ही, वह गलबांही से इंकार नहीं करेगा। आदमी अपने आपको फिर जीवित कर सकता है, अपने जीवन को प्रेम, आनन्द और शान्ति से फिर सराबोर कर सकता है।
मनुष्य के जीवन के दो ही विकल्प सामने आते हैं । एक विकल्प उसकी पशुता होती है और दूसरा विकल्प उसकी प्रभुता। यदि मनुष्य की पशुता संस्कारित हो जाये, उसकी पशुता अगर अमृतरूप स्वीकार कर ले, तो वही पशुता, प्रभुता बन जाती है और अगर मनुष्य की प्रभुता विकृत हो जाये, तो प्रभुता को पशुता होने में देर नहीं लगती। पशुता का संस्कार ही प्रभुता है और प्रभुता का विनाश ही पशता है। ऐसा नहीं है कि मनुष्य के भीतर से पशता मिट चुकी है। पशुओं की सारी जमातों में हम सब एक सुधरी हुई नस्ल हैं, लेकिन जब तक मनुष्य की आकृति में, उसकी अपनी प्रकृति समाविष्ट नहीं होती, तब तक हम अपने आपको प्रभुता की डगर पर खड़ा नहीं कर सकते। प्रभुता यानी GOD और पशुता यानी DOG | गॉड यदि अपने स्वभाव से नीचे गिर जाये, तो वह डॉग हो जायेगा, पर डॉग अगर अपने स्तर से ऊपर उठकर अपना संस्कार करे, तो वही डॉग गॉड हो जायेगा। दोनों में कोई ज्यादा दूरी नहीं है । दूरियां हैं, तो बस केवल
मुक्ति का माधुर्य | 41
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