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मुक्ति का माधुर्य
हमारा जीवन प्रेम, शांति, माधुर्य और आनन्द से परिपूर्ण है और अगर परिपूर्ण नहीं लगता, तो इसे परिपूर्ण बनाया जा सकता है । जीवन में एक अनुपम संगीत की संभावना है। प्रेम की रसधार छलकती रहे, शान्ति की वीणा बजती रहे और आनन्द का अमृत निर्झरित रहे, तो जीवन से बढ़कर न तो कोई मन्दिर है, न कोई अनुष्ठान और न कोई स्वर्ग है। मौसम इतना सुहावना है, बादलों से आसमान आच्छादित है। बादलों के घिर आने के बावजूद आसमान से न तो सूरज खोया है, न चांद खोया है और न कोटि-कोटि तारे विलुप्त हुए हैं । मेघावली के कारण सूरज और चांद, आसमान से बरसने वाला अनंत प्रकाश आच्छादित भले ही हो जाये, लेकिन वह विलुप्त नहीं हो सकता। जीवन का प्रेम, उसकी शान्ति, उसका माधुर्य और उसका आनन्द आवृत हो सकता है, आच्छादित हो सकता है, लेकिन समाप्त नहीं हो सकता।
समझ और सजगता का अभाव होने का कारण जीवन का संगीत विलुप्त हो गया है, जीवन का आनन्द समाप्त प्रायः हो गया है, जीवन का माधुर्य हमारे हाथ से छूट गया है । मेरे देखे, जीवन में रस है, भावों का रस; क्योंकि जीवन कोई व्यापार नहीं है और न ही यह व्यवहार या कर्तव्य है । जीवन का अस्तित्व इससे और आगे भी है । यदि जीवन से आनन्द का संगीत निष्पन्न होता हुआ नजर नहीं
मुक्ति का माधुर्य | 39
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