________________
पथिक है।
अन्तिम चरण में अर्जुन ने कृष्ण से पूछा- भगवान ! आप मुझे ज्ञानयोग और कर्मयोग की प्रेरणा दे रहे हैं, लेकिन मेरा आपसे एक प्रश्न है कि व्यक्ति आखिर किस बात से प्रेरित होकर इतने ज्यादा पाप करता है ? तब कृष्ण कहते हैं कि काम ही वह एकमात्र तत्त्व है, जिससे प्रेरित होकर व्यक्ति दिन-रात पाप करता रहता है । काम की आग मनुष्य के भीतर प्रज्ज्वलित है। यह ऐसी आग है, जो मनुष्य के जीवन को नरक बनाती जाती है । निरन्तर पचास वर्षों तक काम की आग में जलने के बावज़ूद मनुष्य इससे मुक्त नहीं हो पाता । यह आग तो क्या स्वर्ग, क्या नरक और क्या पृथ्वी, सर्वत्र फैली हुई है। काम की अग्नि ने जीवात्मा को नरक बना दिया है ।
जिस व्यक्ति को विषय-वासनाएँ प्रभावित नहीं करतीं, जो कंचन और कामिनी के भाव से मुक्त हो चुका है, वह इस धरती पर जीने वाला दूसरा परमेश्वर है । जब तक काम की यह आग जलती रहेगी, व्यक्ति पाप करता रहेगा । ऐसा नहीं कि व्यक्ति को ज्ञान नहीं है । व्यक्ति को ज्ञान तो है, पर गीता कहती है कि यह जो काम की अग्नि है, यह उस ज्ञान को आवृत कर देती है, उस ज्ञान को ढंक देती है । ठीक वैसे ही जैसे धुआं अग्नि को और माटी दर्पण को ढंक डालती है ।
1
काम मनुष्य का अंधकार है । तुम्हारा ध्यान माटी पर है और जिनका ध्यान माटी पर है, उनके भीतर की ज्योति व्यर्थ हो जाती है । वे व्यक्ति अपने अन्तःकरण में सही प्रेम को नहीं जी पाते, जिनके प्रेम का समापन काम में होता है । जब व्यक्ति का प्रेम काम से मुक्त हो जाता है, तो वही प्रेम राम का कारण हो जाता है । जीवन में या तो राम रहेंगे या काम। राम में काम या काम में राम- यह गड़बड़ नहीं चलेगी। अपने जीवन को संयमित कीजिए, नियंत्रित कीजिए ।
1
मैंने सुना है एक व्यक्ति रात में सो रहा था । सोते-सोते वह नींद में कुछ बड़बड़ाने लगा । जो दिन में होगा, वही तो रात में उभरकर आयेगा । वह किसी का नाम पुकार रहा था - प्रीति ! प्रीति !! पत्नी ने पति को झिंझोड़ा और पूछा कि तुम किस प्रीति की बात कर रहे थे ? पति संभला और सोचने लगा कि लगता है कोई बात मुंह से निकल पड़ी है। पत्नी के दूसरी बार पूछने पर वह सफ़ाई देते हुए कहने लगा- दरअसल रेस में कल जो घोड़ी अव्वल रही थी, उसी का नाम
36 | जागो मेरे पार्थ
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org