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हर आदमी संसार को त्यागकर संन्यासी और श्रमण नहीं हो सकता। लेकिन हर आदमी को ऊंचे लक्ष्य दिये जा सकते हैं, ऊंचे मार्ग दिये जा सकते हैं । बस, प्रमाद टूटे, तो बात बने । हमारी नसों में प्रमाद का ज़हर बेहिसाब घुल गया है।
मैंने सुना है : दो मित्र सो रहे थे । एक ने देखा कि मकान का दरवाजा खुला है। उसने दूसरे मित्र से कहा, 'मित्र, ज़रा बाहर देखकर तो आओ कि बारिश हो रही है या नहीं।' चूंकि उसे आभास था कि अगर मैं इसे सीधे-सीधे दरवाजा बंद करने के लिए कहूंगा, तो यह मुझे ही कह देगा कि दरवाजा तुम्हीं बन्द कर लो। तो दूसरे मित्र ने जवाब दिया-'एक बिल्ली अभी-अभी बाहर से आई थी। मैंने उसकी पीठ पर हाथ फेरा तो पाया कि वह गीली थी। इससे लगता है कि बाहर बारिश हो रही है।' यह कहकर उसने करवट बदल ली।
तो पहला बोला, 'ठीक है, खड़े होकर कंदील तो बुझा दे।'
दूसरे ने कहा, 'तू अपनी आँखों को बंद कर ले, कंदील अपने-आप बुझ जायेगी।'
पहला मित्र खीज़ उठा, उसने सीधे साफ कहा, 'अच्छा दरवाजा बंद कर दे।'
तो सपाट जवाब मिला 'दो काम मैंने निपटा दिये हैं, अब तीसरा काम तू ही निपटा दे।' और यह कहकर वह चादर तान सो गया।
प्रमाद ही प्रमाद ! जीवन कोई प्रमाद से पार पड़ सका है ? निठल्लेपन से कभी किसी का निस्तार और उद्धार हुआ है ! कर्मण्यता चाहियेकर्मण्येवाधिकारस्ते-कर्म तुम्हारा अधिकार है, अकर्मण्य मत बनो। मैं देखता हूँ कि लोगों के पास कोई काम नहीं है । बहुत फुर्सत है, फिर भी किसी से पूछा जाये, तो कहेगा बहुत व्यस्त हूँ । व्यस्तता कुछ भी नहीं है, केवल प्रमाद है, अकर्मण्यता है। इसी कारण व्यक्ति दीन-हीन और दरिद्र बना हुआ है ।।अगर अपने जीवन का कल्याण चाहते हो, तो कृष्ण पहली बात यह कहेंगे कि कर्म करो, दूसरी बात, आसक्ति से रहित होकर कर्म करो और तीसरी बात कर्ता-भाव से मुक्त होकर कर्म करो। ये तीन सूत्र अगर व्यक्ति के जीवन में हैं, तो वह कर्मयोग करते हुए भी ज्ञानयोगी है । उस व्यक्ति के लिए कहीं कोई पाप नहीं है । वह परमात्मा का
कर्मयोग का आह्वान | 35
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