SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सच तो यह है कि देश को आजाद हुए पचास साल हो गये हैं, पर पचास में से 'पांच' राजनेताओं के कंधे पर है, जनता के हाथ में तो 'जीरो' ही है। देश को भिक्षा का पात्र मत बनने दो। देश की जनता जागे, हर आदमी यह सूत्र स्वीकार करे - श्रमेव जयते । श्रम के द्वारा ही जय-विजय है, सफलता है । 1 मैं देखता हूँ कि लोग जरूरतमंदों के लिए चंदा इकट्ठा करते हैं। धर्म के नाम पर कुछ जरूरतमंदों को सहायता देते हैं । अनाथ और विकलांग आदमी को सहायता दी जाये, तो बात जंचती है। हालांकि उनके स्वाभिमान को भी जगाया जाना चाहिये । उन्हें भी पांवों पर खड़े होने का सहयोग और प्रोत्साहन दिया 'जाये। मेरी समझ से क्यों न हम व्यक्ति को कमाकर खाने की प्रेरणा दें। भीख मांगना या सहायता मांगना यह कौन - सा महान् कार्य हुआ । धंधा छोटे-से-छोटा ही क्यों न हो, अपनी आजीविका के लिए श्रम करो । यदि व्यक्ति यह सोचता है कि अमुक धंधा छोटा है, उसमें मैं हाथ कैसे डालूं, तो यह उसकी ग़लत सोच है । लोगों के आगे हाथ पसारने से तो अच्छा है कि तुम छोटे-से-छोटा धंधा ही कर लो। हाथ तुम्हारी तरफ से लोगों को कुछ देने के लिए आगे बढ़ायें, मांगने के लिए नहीं । आखिर भीख जैसा घृणित काम क्यों किया जाये। नवजीवन का, नवसमाज का, नवभारत का, नवविश्व का निर्माण करने के लिए हमें श्रम और सृजन को अपना मित्र बनाना चाहिये । कर्मयोग कृष्ण का महान् सन्देश है । कर्मयोग तुम्हारी पूजा बन जाये, परमात्मा का मंगल आशीष बन जाये, ऐसा कोई प्रयास हो । जीवन से पलायन नहीं, जीवन के साथ जैसी परिस्थितियाँ हैं, उन्हें स्वीकार करें, जीवन से संघर्ष करें । उपद्रव उत्पात चाहे जो आयें हम तूफ़ानों से घबराएँ नहीं, अपने जीवन की किश्ती को उल्टे तूफानों की ओर बढ़ने दें । पुरुषार्थ को अरिहंत का रूप लेने दें, पुरुषार्थ को सिकन्दर होने का अवसर दें । किश्ती को भंवर में घिरने दें, मौजों के थपेड़े सहने दें । तूफ़ानों के द्वारा जो ऊंची-ऊंची तरंगें और ज्वारभाटा उठ रहे हैं, उनका सामना करो । अपनी किश्ती को भंवर में जाने दो। भंवर हमारा दुश्मन नहीं, हमारी कसौटी है, चुनौती है। हमारा आत्मबल और बाहुबल कितना है इसकी परीक्षा है। Jain Education International For Personal & Private Use Only कर्मयोग का आह्वान | 31 www.jainelibrary.org
SR No.003890
Book TitleJago Mere Parth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2002
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy