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घंटों आराम से बैठे रहते हैं, इसको भी वे कर्मयोग का एक अंग मानते हैं। जहां अन्यत्र प्रार्थनाएँ, व्यायाम और स्वास्थ्य के इंतजाम हो रहे हैं, हिन्दुस्तानी पूरी तरह निस्तेज पड़ा है, सुबह नौ-दस बजे तक खर्राटे भर रहा है। जीवन के प्रति आदमी
मान हो गया है। राष्ट्र और धर्म का गौरव उसके हाथ से फिसल गया है। तब इस देश का कायाकल्प कैसे होगा ? स्वावलंबिता इतने खतरे में आ गई है कि लोगों को बिस्तर में पड़े-पड़े ही चाय चाहिये । दंतुअन का पता नहीं, बासी मुंह साफ किया नहीं और शहजादे को चाय चाहिये ! जिस देश में दूध-घी की नदियाँ बहा करती थी, आज उस देश, उस समाज के हालात तो देखो । आज गांव-गांव में शराब, अंडे, मांस का सेवन किया जा रहा है। हम किस संस्कृति की रक्षा करना चाहते हैं. जबकि हमारी संस्कृति नष्ट-भ्रष्ट होती चली जा रही है । जिस देश ने सारे संसार को संस्कृति के महान् आदर्श दिये हैं, वही देश आज अपनी सांस्कृतिक धरोहर से, सांस्कृतिक सिद्धान्तों से, सांस्कृतिक अवदानों से पूरी तरह नीचे गिरता है 1
चला जा रहा
सिवाय राजनीति और सैक्स के तुम्हें अखबारों में भी कुछ पढ़ने-देखने को नहीं मिलेगा। समाज के उत्थान के नाम पर लोग श्रम करने की बजाय एक-दूसरे से मांगते फिरते हैं। भीख मांगने को भी हमने कर्मयोग से जोड़ लिया है। मांगने के लिए अपने हाथों को औरों के सामने फैलाकर हमने अपने समाज और देश का इतना सत्यानाश कर डाला है कि लोग सोचते हैं कि मांगने से ही अगर मिल जाता है, तो कमाएँ किसलिए, क्यों मेहनत की जाये ? भीख मांगना भी एक कर्मयोग ! भिखारी से कहो कि तुम भीख मत मांगो, तुम मेरे यहां मजदूरी करो, मैं तुम्हें बीस रुपये मेहनताना दूंगा, तो भिखारी का जवाब होगा- तुम अगर मेरे साथ भीख मांगो, तो मैं तुम्हें चालीस रुपये देनगी दूंगा । ऐसी स्थिति में सोचो इस देश की हालत क्या होगी ?
हम और देशों के कर्जदार हो गये । 'जहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा, वो भारत देश है मेरा ।' अब ऐसी पंक्ति केवल कविताओं में अच्छी लगती है । यथार्थ कुछ और है ।
महंगी रोटी, महंगी चीनी, महंगा सब सामान
बेच रहे हैं, देश की शान, फिर भी मेरा देश महान् ।
30 | जागो मेरे पार्थ
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