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ने कहा, यह क्या करते हो? यह कैसी नादानी? अभी शाम होने में बहत देर है । तब तक गीत पूरा हो जायेगा, भोजन पूरा हो जायेगा । राजा की बड़ी कृपा है कि उसने शाम तक का वक्त दिया। मित्रों ने कहा, यह तुम क्या कहते हो ? अब कैसे भोजन हो सकता है, कैसे बजेगी वीणा? वजीर ने कहा, इससे अनुकूल और क्या परिस्थितियाँ हो सकती हैं। इससे अनुकूल और क्या हो सकता है । मृत्यु से पहले मुझे अच्छा भोजन, अच्छा संगीत, अच्छे मित्र, जिसे एक बार भी चाहा हो वे सब मेरे पास हैं । मृत्यु के लिये इससे बेहतर अवसर और क्या हो सकता
राजा को पता चला कि वजीर के यहाँ तो नृत्य हो रहा है । राजा खुद देखने आया। उससे रहा नहीं गया। उसने वजीर से कहा, यह क्या कर रहे हो । शाम को तुम्हें फाँसी हो जायेगी ! वजीर ने कहा, राजन् तुमने अच्छा किया, जो आ गये । इन आँखों ने तुम्हें भी चाहा था। मैं सोच रहा था कि कोई प्रिय बच गया है । तुम भी साथ ही भोजन कर लो तो अच्छा हो । राजा ने कहा, जिसने मौत को जीत लिया है, उसे मृत्यु-दण्ड देने से क्या होगा । उसे तो जिन्दा रहना ही चाहिये।
यह कृष्ण का कर्मयोग है । महावीर ने इसी को “वत्थुसहावोधमो', धर्म स्वभाव है ऐसा कहा । वह जो प्रत्येक वस्तु का स्वभाव है, धर्म है । यही कारण है कि महावीर का धर्म हिन्दू, जैन, ईसाई, बौद्ध, मुसलमान नहीं है । महावीर कहते हैं-धर्म का अर्थ है जो तुम्हारा गहनतम स्वभाव है, वहीं तुम्हारी शरण है ।
इसीलिए जो बदल रहा है वह मैं नहीं हूँ। यह महावीर की चेतना का हिस्सा है। और यही कृष्ण की व्याख्या भी । जिस प्रकार मूर्ख गाड़ीवान जान-बूझकर साफ-सुथरे, राजमार्ग को छोड़कर विषम, टेढ़े-मेढ़े, ऊबड़-खाबड़, मार्ग पर चल पड़ता है और गाड़ी की धुरी टूटने पर शोक मनाता है, वैसे ही मूर्ख मनुष्य भी जान-बूझकर धर्म को छोड़ अधर्म को पकड़ लेता है और अन्त में मृत्यु के मुख में पहुँचने पर, जीवन की धुरी टूट जाने पर शोक करता है । मूर्खता का अर्थ अबोधता नहीं है । बालक मूर्ख नहीं होता, जानवर मूर्ख नहीं होता है । मूर्खता जानकार का ही लक्षण है । कृष्ण कहते हैं कर्म को समझ, तभी कर्म-योग घटित. होगा।
हमने कर्मयोग को बहुत ही संकीर्ण अर्थों में लिया है । लोग सुबह-सुबह
कर्मयोग का आह्वान | 29
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