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यह स्वीकार करने को तैयार नहीं है कि वह रात को भोजन नहीं करेगा। मैंने राक्षसों को देखा तो नहीं है, पर उनके बारे में यह जरूर सुन रखा है कि वे रात भर और दिन भर खाते रहते हैं । न भोजन पर संयम, न इच्छाओं पर नियंत्रण और न अपनी कामनाओं तथा वासनाओं के प्रति तितिक्षा का भाव । कहाँ जाकर पार उतरोगे? कब तक तुम मन्दिरों में जाकर दो रुपये के नारियल से भगवान को फुसलाते रहोगे और यह सोचते रहोगे कि मैंने तो भगवान को अपने पाप समर्पित कर दिये हैं और अब मैं पाप-मुक्त हो गया हूँ । जीवन की कोई तो सीमा-रेखा खींचो।
जीवन तो एक उपन्यास बन गया है । उपन्यास पढ़ने के बाद कोई पूछे कि क्या पढ़ा, तो कहेंगे टाइम पास किया। जिंदगी बीत रही है । बस टाइम पास किया जा रहा है।
___ महाभारत का एक प्रसंग है : जब राजा ययाति सौ साल के हुए, तो मृत्यु उनके द्वार पर आई और कहने लगी-ययाति, तुम्हारा जीवनकाल अब पूरा हो गया है । ययाति ने कहा-मौत ! तू तो बहुत जल्दी आ गई । अभी तक तो मैंने जीवन को ढंग से जीया ही नहीं । मैं सौ साल और जीना चाहता हूँ, ताकि मैं अपनी कुछ कामनाएं, कुछ तृष्णाएं और पूरी कर सकू । मौत शायद आज जितनी अड़ियल न थी, झाँसे में आ गई और कह दिया-ठीक है, तुम्हारे सौ संतानें हैं, उनमें से एक को मेरे साथ भेज दें। ययाति ने अपने बेटों से पूछा, तो बेटों ने कहा-पिताजी, अभी तक तो हमने जिंदगी का मजा ही नहीं लिया, पर सबसे छोटा बेटा मान गया। उसने कहा-कोई बात नहीं पिताजी । अगर मेरे मरने से आपको सौ साल की जिंदगी मिल जाती है, तो मैं मरने के लिये तैयार हूँ और वह मर गया। ___सौ साल बाद फिर मौत आई । इन सौ सालों में उसके पहले वाले सौ बेटे मर गये और सौ बेटे पैदा हो गये, लेकिन ययाति की वही तृष्णा, वही जीवेषणा। फिर एक बहाना ढंढा गया, फिर छोटा वाला बेटा मरा और ययाति को सौ साल का जीवन मिला। इस तरह ययाति नौ सौ साल जीया । जब एक हज़ारवां वर्ष होने लगा, तो मौत फिर आई और छोटा बेटा फिर मरने के लिए तैयार हुआ। तब छोटे बेटे ने मौत से कहा-मृत्यु, मैं तुम्हारे साथ चलने के लिए तैयार हूँ। तुम्हें पता है कि मैं नौ बार मर चुका हूँ। आज मैं तुम्हारे साथ अन्तिम बार जाने से
20 | जागो मेरे पार्थ
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