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अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिये, इसीलिये तो कृष्ण मनुष्य को तीर-भाला उठाने की प्रेरणा देते हैं। हर मनुष्य के एक हाथ में माला रहनी चाहिये और दूसरे हाथ में भाला । माला धार्मिकता और नैतिकता तथा ईश्वर के प्रति समर्पण के लिए है, जबकि भाला इसलिए है कि कोई व्यक्ति तुम्हारी बहन-बेटी पर बुरी नज़र न डाले; तुम्हारे इबादतखाने और प्रार्थना-स्थल सुरक्षित रहें और तुम्हारे समाज, तुम्हारे राष्ट्र पर कोई आंच न आने पाये । तब यह भाला हिंसा नहीं है, अहिंसा का ही छिपा रूप है । भाला इसलिए कि कृष्ण का कर्मयोग सार्थक हो सके और माला इसलिये कि महावीर का अरिहंत स्वरूप पूरी तरह से तुम्हारे जीवन में प्रतिष्ठित हो सके। इस सन्दर्भ में मैं मनुस्मृति का स्मरण करना चाहूँगागुरुं वा बालवृद्धोवा ब्राह्मणं वा बहुश्रुतुम् आततायी न मायांतं हन्यान् देऽवो विचारऽयन् ।
गुरु हो, बालक हो, वृद्ध या स्त्री हो, अथवा ब्राह्मण हो इनको मारना अनैतिक है । फिर भी मनुस्मृति कहती है कि इनमें से भी कोई आततायी बनकर आ जाए, हमलावर बन कर आ जाए तो उस पर प्रत्याक्रमण करने का तुम्हें पूरा अधिकार है
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जैनों का सबसे पावन मंत्र है- नवकारमंत्र | नवकारमंत्र का पहला चरण है—' णमो अरिहंताणं', अरिहंतों को नमस्कार । अरिहंत अर्थात शत्रुओं को मारने वाला । शत्रु अगर बाहर हैं, तो उनको भी परास्त करो और शत्रु अगर भीतर हैं, तो उनका भी संहार करो। ऐसा करना जितेन्द्रियता है ।
पहले चरण में तो बाहर के शत्रुओं को परास्त करना है और दूसरे चरण में अपने भीतर के शत्रुओं को परास्त करना है । इसीलिए गीता में ज्ञान-योग की भी प्रेरणा है और कर्मयोग की भी । गीता सांख्य- योग का भी प्रतिपादन करती है और कर्तव्य-कर्म करने की भी प्रेरणा देती है । यह तो बिलकुल उस माटी के घड़े के समान है, जिसको बनाने के लिए कुम्हार उसे सहारा भी देता है और हाथ से थपथपाता भी है । अरिहंत तो होना ही है, बगैर अरिहंत हुए छुटकारा संभव नहीं है । मैं आप सबको आह्वान करता हूँ कि अरिहंत बनो और एक-एक शत्रु का हनन करो। अपने दुष्प्रवृत्तियों के दुःशासन को उखाड़ फेंको, अपने जीवन में चल रहे दुष्चक्रों के दुर्योधनों की टांगें काट डालो, अपने स्वार्थ के शकुनियों को जितना
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चुनौती का सामना | 17
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