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चुनौती का सामना
हर मनुष्य के भीतर एक महाभारत मचा हुआ है, एक भयंकर उथल-पुथल है । ठीक वैसा ही महाभारत जारी है, जैसा द्वापर युग में कौरवों और पांडवों के बीच हुआ था । क्रोध और कषाय के कंस, दुष्प्रवृत्तियों के दुःशासन और दुष्चक्रों के दुर्योधन मानव-मानव के भीतर पूरी तरह अपने पाँव जमाये बैठे हैं । ऐसा नहीं कि शकुनियों ने मिलकर हजारों वर्ष पहले जोड़-तोड़ की । सच्चाई तो यह है कि आज भी मानव जाति के भीतर स्वार्थ के शनि पूरी तरह कमर कसे हुए हैं। चाहे असम को देखें, चाहे पड़ोसी देश श्रीलंका और पाकिस्तान को देखें, रोज़-ब-रोज़ लाक्षागृह के जलने के समाचार हमें सुनने और पढ़ने को मिल जायेंगे।
पहले ज़माने में किसी आदमी को मारना होता था, तो वीरत्व की दरकार होती थी, मगर आज हज़ारों लोगों को मारना एक बच्चे के बायें हाथ का खेल है। न केवल राष्ट्र और राष्ट्र के बीच, वरन् समाज और समाज के बीच, जाति और जाति के बीच, घर और परिवार के बीच भी महाभारत जारी है । एक भाई ही भाई के खून का प्यासा हो जाये, एक बाप ही अपनी बेटी के साथ मुंह काला कर बैठे, एक माँ अपने हाथों से अपने बेटे की हत्या कर डाले-क्या इससे बड़ा महाभारत हजारों वर्ष पहले कभी हुआ? पहले तो कभी एक ही कुरुक्षेत्र में महाभारत का
चुनौती का सामना | 11
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