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जंग के और भी तो मैदां हैं, सिर्फ मैदाने कस्तखं ही नहीं। हासिले, ज़िंदगी खिरत भी है,
हासिले ज़िंदगी जुनूं ही नहीं। जो ज़िंदगी मिली है, वह परहित-परोपकार में गुजरे । ज़िंदगी जुनूं नहीं है कि जिसके वशीभूत होकर तुम धरती पर नरसंहार करने लगो। लड़ना है, तो लड़ो, लेकिन अपने क्रोध से, अपने विकारों से, अपने स्वार्थों से, जिनके कारण तुम सबसे कटते जा रहे हो । परिवार, समाज और संसार संत्रस्त हैं । युद्ध के और भी मैदान हैं। धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे । और भी करुक्षेत्र हैं और यह कुरुक्षेत्र हम सबके भीतर है, जहाँ सत्य-असत्य के, धर्म-अधर्म के, सुख-संत्रास के कौरव-पांडव युद्ध के लिए दिन-रात सन्नद्ध हैं । कर्मयोग करो ऐसा, जिससे शान्ति के साम्राज्य की स्थापना हो सके।
आओ, इस पीरावक्त दुनिया में, फिक्र की रोशनी आम करें। अमन को जिससे तकवियत पहुँचे,
ऐसी जंगों का इंतज़ाम करें। हम सब मिलकर इस दुनिया को अमन-चैन दें, जिसके साये में सारी धरती महक उठे। हम अपने हाथों से इस धरती को जन्नत बनायें । मरने के बाद आप किस स्वर्ग में जायेंगे, मुझे नहीं मालूम, मगर इतना मालूम है कि स्वर्ग धरती पर बन सकता है, जिसकी ताबीर, जिसकी शुरुआत आपके हाथों से हो । अगर तुम इसी धरती को स्वर्ग बना लो, तो तुम्हें किसी दूसरे स्वर्ग की आवश्यकता नहीं होगी । धर्मराज और इन्द्र अपने कथित स्वर्ग की चिंता करें, हम तो यह सोचें कि यह धरती कैसे स्वर्ग बन पाये, जिस पर हम जीते हैं । भगवान करे आप इस धरती को स्वर्ग बनाकर जायें । ऐसा स्वर्ग कि आपमें इसी धरती पर आने की तमन्ना जगे। हमारे स्वर्ग का इंतज़ाम हम खुद करें-स्वर्ग को अपने हाथों से अपने सामने बनायें।
10 | जागो मेरे पार्थ
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