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आत्मा हैं, शांतिदूत हैं । अन्तरमन को जीतना ही गीता की आत्मा है ।
जंग तो खुद एक मसला है,
जंग क्या ख़ाक मसलों का हल देगी। युद्ध तो खुद एक समस्या है और जो चीज खुद एक समस्या है, वह हमारे लिए समाधान का सबब कैसे बन सकती है ? तुम अगर बाहर के युद्ध करते रहे, तो युद्ध करते-करते न जाने कितना संहार कर बैठोगे और जब तुम विजय-पताका फहराओगे तो तुम्हें लाशों के बीच उत्सव करने के लिए ठौर-ठिकाना भी न मिलेगा। किस पर उत्सव ! किसका उत्सव ! कलिंग-युद्ध के बाद सम्राट अशोक विजय-उत्सव मनाने लगे, तो भिक्षुओं ने आकर कहा-तुम उत्सव जरूर मनाओ, पर जिन लाशों को तुमने बिछाया है, उनको भी पलभर देख लो। फिर उत्सव मनाना । तब धरती पर वह सम्राट प्रकट हुआ, जिस सम्राट पर अहिंसा को नाज़ है। अपने द्वारा किये युद्ध पर स्वयं अशोक की आँखों में पानी था-करुणा, दया और प्रेम का पानी।
इसलिए ऐ शरीफ इंसानो, जंग टलती रहे तो बेहतर है, हम और आप सभी के आंगन में,
शमां जलती रहे तो बेहतर है। जंग टलने में ही बेहतरी है। अगर मुक़ाबिल युद्ध छिटक सकता है, दूर किया जा सकता है, तो बहुत अच्छा । हम तो शमां जलाएँ, शांति के चिराग जलाएं प्रेम और विश्व-बन्धुत्व के गीत गुनगुनाएँ ।
बरतरी के सुबूत की खातिर खू बहाना ही क्या जरूरी है; घर की तारीकियां मिटाने को
घर जलाना ही क्या जरूरी है। अपने बड़प्पन, अपने अहंकार की खातिर खून बहाना ज़रूरी है ? माना घर का अंधकार मिटाना है, पर यह किसने सुझाया कि इसके लिए तुम अपने ही घर को आग लगा बैठो ! जिस वृक्ष से तीली बनाई है, उसी तीली से वृक्ष को आग लगाओ !
गीता का पुनर्जन्म | 9
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