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संग्राम रचा था, लेकिन आज बच्चा-बच्चा तीर-कमान उठाये हए अपने ही मित्रों पर तीर फेंक रहा है।
कहा जाता है कि भाई जैसा कोई मित्र नहीं होता और भाई जैसा कोई शत्रु नहीं होता। ऐसा नहीं है कि यह बात कौरवों और पांडवों के बीच ही सही हो। यह बात तो हम सब लोगों के लिए है। राम और भरत, कौरव और पांडव जैसे भाई पहले भी होते थे और आज भी होते हैं । भाई के खून के प्यासे भाई भी आज हैं और भाई की चरण-पादुकाओं को सिंहासन पर आसीन करके राज्य, परिवार, घर का संचालन करने वाले सज्जन भी आज मौजूद हैं । वे परिवार महान् पुण्यवान और वे घर अत्यन्त पावन हैं, जिनमें भाई-भाई एक भाव, एक रस, एक प्रेम में आबद्ध होकर जीते हैं । मुझसे कोई अगर पूछे कि संसार में सबसे बड़ा पाप क्या है ? तो मैं कहूंगा मां-बाप के जीते अगर उनकी संतानें आपस में बंट गई हैं, तो इससे बड़ा पाप और कोई नहीं होता। अगर धृतराष्ट्र के सामने उसकी अपनी संतानें सिरफुटौव्वल करने को तैयार हो जायें तो यह पुण्य के मंगल कलश का धराशायी होना ही हुआ। यह द्वापर में कलि का आगमन हुआ। तो यह मत सोचना कि द्वापर युग कोई महान् युग होगा और कलियुग कोई बहुत अधर्म-समय होगा।
कालचक्र की धार पर समय कभी एक-सा नहीं रहता, लेकिन इस धरती पर अच्छे इंसान पहले भी रहे हैं, आज भी हैं और भविष्य में भी रहेंगे। समय सबका साक्षी है । समय तो जैसा पहले था, वैसा आज भी है । प्रेम से अगर घर में रहते हो, ठीक ऐसे ही कि जैसा यह गीता भवन है जहाँ सुबह मेरी आंख खुलती है, तो एक ओर से मस्ज़िद से अज़ान सुनाई पड़ती है, तो दूसरी ओर से प्रार्थना, शंखध्वनि और घंटी की आवाज की रोशनी मुझ तक पहुँचती है। अगर इतना ही प्रेम तुम अपने घर में, अपने परिवार में रख पाओ, तो यह समय कलियुग का नहीं, द्वापर-त्रेता और उससे भी बढ़कर सतयुग का प्रतीत होगा।
गीता का परिवेश हम सब लोगों के लिए सार्थक है। गीता का संदर्भ कोई अतीत का संदर्भ नहीं बन चुका है। यह तो पूरी तरह सम-सामयिक संदर्भो को समेटे हुए है । गीता को गाने वाले श्रीकृष्ण कोई अतीत का अस्तित्व नहीं हैं, वरन् वे वर्तमान का माधुर्य हैं।
12 | जागो मेरे पार्थ
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