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अपने श्रमणत्व की सजगता को जीवित रखना । अगर तुम इतना कर पाते हो, तो चाहे जहाँ जाओ, तुम मेरे शांति और ज्ञान के मार्ग को आगे बढ़ाओगे । सजगता चाहिये, जागरूकता चाहिये ।
तमोगुण के प्रमाद को तोड़ने के लिए सघन जागरूकता चाहिये, सघन विवेक चाहिये | अगर तोड़ना चाहते हो अपने तमोगुण को, तो कैसे तोड़ोगे ? कौनसा तरीका है कि जिससे तुम अपनी अंधी मानसिकता को तोड़ सको ? मैं तो यही मार्ग बताऊंगा कि मनुष्य जागरूकतापूर्वक, विवेकपूर्वक जीये और अपने जीवन में जो तमोगुण गहरी जड़ें जमा चुका है, वहाँ सतोगुण के प्रकाश को ले जाना प्रारम्भ करे । ऐसा करके ही व्यक्ति अपने जीवन को स्वर्ग बना सकता है और गुण के नरक से अपने आपको बचा सकता है ।
सूत्र है :
ऊर्ध्वं गच्छंति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः । जघन्यगुणवृत्तिस्था, अधो गच्छन्ति तामसाः ॥
- सत्व गुण में स्थित पुरुष ऊर्ध्व लोक जाते हैं; रजोगुण में स्थित मनुष्य मध्य में रहते हैं ओर तमोगुण में स्थित तामस पुरुष अधोगति को प्राप्त होते हैं ।
सतोगुण यानी जीवन का देवत्व, जीवन की दिव्यता; रजोगुण यानी मनुष्यता और तमोगुण यानी पशुता । अगर तुम रजोगुण में जी रहे हो, आसक्ति में जी रहे हो, कामनाओं के भंवर में जी रहे हो, तो तुम मध्य लोक में जी रहे हो । जीवन के बाद अगर मृत्यु भी हुई, तो वापस इसी लोक में लौट आओगे। जैसा करोगे, वैसा ही पाओगे । मध्य लोक से ऊपर उठना ही जीवन की प्रगति है और इसी मध्य लोक में बार-बार लौट आना ही संसार की पाठशाला में अनुत्तीर्ण हो जाना है । पुनर्जन्म का मात्र इतना सा ही रहस्य है कि भगवान ने तुम्हें संसार में भेजा, लेकिन तुम संसार की पाठशाला में रहकर ठीक से पढ़ न पाये, मेहनत न कर पाये, जीवन को पूरा पढ़ न पाये । तब बार-बार यहीं धक्के खाने के लिए भेज दिये जाओगे ।
भगवान कहते हैं कि तमोगुण में जीने वाला व्यक्ति अधोगति को प्राप्त होता है । मरोगे, तो मरने के बाद कीट-पतंगे, कीड़े-मकोड़े, जीव-जन्तु या पशु-पक्षी नहीं बनोगे, अन्तर्मन में इन जीव-जन्तुओं की प्रकृति कमोबेश अभी भी
सतोगुण की सुवास | 171
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