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________________ आंसुओं को ढुलकाना परमात्मा के चरणों का गंगाजल से प्रक्षालन करना है; यहाँ तो एक-एक आंसू का बहना भी भक्ति की शुमार है। जब भगवत्ता के भाव में डूबे हुए व्यक्ति के हृदय से आंसुओं की जलधार टप-टप गिरने लग जाये, तो चित्त निर्भार हो जाता है। यह देह तो एक माटी है, एक दीया है । एक दीया वो होता है, जो अखंड जलता रहता है, मगर स्वयं अपने लिए ही और दसरा दीया वो है. जो मंदिर-मंदिर जलता है, मगर परमात्मा के लिए, परमात्मा के पथ को प्रकाशित करने के लिए-'ओ मेरे दीपक जल, प्रियतम का पथ आलोकित कर ।' वो दीपक इसलिए जलता है कि कहीं भगवान इस रास्ते से गुजरते हुए आ जायें, तो उन्हें अंधेरा न मिले, प्रकाश ही प्रकाश हो । भक्त की केवल एक ही इच्छा, एक ही भावना रहती है इच्छा केवल रजकण में मिल, तव चरणों के निकट पर्छ। आते-जाते कभी तुम्हारे श्रीचरणों से लिपट पडूं ॥ एक भक्त का केवल इतना-सा भाव है कि प्रभु, हम नहीं कहते कि तू हमें अपना विराट स्वरूप देकर विराट बना । हम तो केवल इतना-सा कहते हैं यह जो तुम्हारा विराट स्वरूप है, उसमें हमें तू फूल की तरह स्वीकार कर लेना । इतना भी न कर सको, तो हम तो अपने आपको एक माटी के कण की तरह इस मंदिर की माटी को, अपने आपको समर्पित करते हैं । एक ही भावना, एक ही कामना । भक्त इससे ज्यादा क्या कामना कर सकता है, प्रभु से क्या कृपा चाह सकता है ? अगर वह एक चरण ही पड़ गया, तो जीवन सार्थक हो जायेगा, जिसका स्पर्श पाने को देवता भी तरसते हैं। वे चरण, चरण नहीं पारस हैं, जिसके स्पर्श से हम वो नहीं रहते जो आज तक हैं । तब हम वो हो जाते हैं, जो हमें होना होता है । तब मैं मिट जाता है, वो हो जाता है, हम मिट जाते हैं, हमारे स्थान पर वो हो जाते हैं। प्रभुता को सब कोई मरे, प्रभ को मरे न कोय। जो कोई प्रभु को मरे, प्रभुता दासी होय ॥ 136 | जागो मेरे पार्थ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003890
Book TitleJago Mere Parth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2002
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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