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क्षात्रत्व पंगु हो गया । भगवान उसे भरोसा दिला रहे हैं कि तू क्यों चिंता करता है । मैं जो तुम्हारे साथ हूँ । तुम्हारी विजय मैं तुम्हें दिलाऊंगा । तू तो अनन्य प्रेम से मेरा स्मरण कर, कर्तव्य कर्म में, लक्ष्यमार्ग की ओर प्रवृत्त हो जा । निर्बल के बलराम - भगवान तो सहारा है, सम्बल है ।
परमात्मा को तो प्रेम चाहिये । तुम्हारा प्रेम ही उनके लिए 'प्रीमियम' होगा । परमात्मा प्रेम में ही बसते हैं । जीसस कहते हैं - 'प्रेम ही परमात्मा है : लव इज गॉड ।' प्रेम ही भगवान है । जिसने प्रेम पा लिया, उसने सब कुछ पा लिया । जिसके जीवन में प्रेम नहीं, उसका जीवन तो ऐसा ही है जैसे मिट्टी का कोई कौर हो और जिसे खाया जाये, तो थूकना ही बेहतर होता है । प्रेम है तो रसधार बहेगी; प्रेम है तो हृदय जीवित रहेगा। प्रेम है तो जीवन में प्राण रहेगा। प्रेम ही मर गया, तो तुम्हीं मर गये ।
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अगर प्रेम ही हमारे जीवन की प्रार्थना बन जाये, तो मुझे नहीं लगता कि उससे बड़ी कोई प्रार्थना होती होगी। वह प्रार्थना ज्यादा जीवंत है, जब प्रेम ही प्रार्थना बन जाये, प्रेम ही प्रसाद बन जाये, प्रेम ही परमात्मा का आशीष बन जाये । भगवान करे मेरा प्रेम आप सब लोगों तक पहुँचे, अनंत रूपों में, अनंत वेश में । प्रेम में जहाँ माँ और बेटे का दुलार है, वहीं भाई और बहिन का प्यार भी है, पति और पत्नी का अनुराग भी है, वहीं हृदय में हृदयेश्वर के लिए प्रार्थना है । अगर प्रेम है तो भगवान टाल नहीं सकेंगे केवट की अरदास को, लांघ नहीं सकेंगे वे सूर के हृदय को, अनसुना नहीं कर पायेंगे वे मीरा की करताल को । अगर प्रेम है, तो भगवान स्वयं हममें वास करते हैं, क्योंकि भगवान स्वयं प्रेम के पर्याय हैं । प्रेम यानी परमात्मा और परमात्मा यानी प्रेम । दोनों मानो एक ही सिक्के के दो पहलू ।
प्रेम यानी समर्पण । प्रेम यानी बूंद का सागर में निमज्जित होना । प्रेम अगर विकृत बन जाता है, तो प्रेम काम और क्रोध बन जाता है और प्रेम भक्ति बन जाये तो वही प्रेम परमात्मा के श्रीचरणों में समर्पित हो जाता है । प्रेम विकृत हो जाये, तो काम का रूप ले लेता है और अपनी आपूर्ति के लिए मिट्टी ढूंढता है और जब प्रेम भक्ति बन जाता है, तो वही प्रेम अपनी पूर्ति के लिए भगवान की प्रार्थना में डूब जाता है । कबीर कहते हैं- 'ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय ।' तुम्हारी पंडिताई किस काम की, अगर वो प्रेम नहीं । प्रेम है, तो पांडित्य भी काम आयेगा ।
114 | जागो मेरे पार्थ
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