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के मार्ग से कैसे जुड़ेंगे। परमात्मा ऊंची चीज है। अच्छे मार्ग पर आयें, अच्छे मार्ग पर आगे बढ़ें, परमात्मा सदा हमारे साथ रहेगा, हमारे साथ ही जीयेगा । हम उसे समर्पित हो जायें, हमारे योगक्षेम के प्रबन्ध का दायित्व उसका होगा ।
अनन्याः चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते । तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥
- जो भक्तजन परमेश्वर का अनन्य प्रेम से चिंतन करते हैं, निष्काम भाव से भजते हैं, उस अनवरत एकीभाव से मुझ में स्थित पुरुषों का योगक्षेम, मैं स्वयं प्रदान करता हूँ ।
भगवान हमें हमारा योगक्षेम प्रदान करते हैं । हमारे योग और क्षेम को वहन करने वाले, हमारी कुशलताओं और हमारी समृद्धि, हमारे मंगल-स्वरूप को धारण करने वाले स्वयं परमात्मा हैं । हमारे जीवन की सारी व्यवस्थाएँ वे निभाते हैं । हमारा दायित्व वे संभालने के लिए तैयार हैं। न केवल संकट की घड़ी में, वरन् अनुकूलताओं के क्षणों में भी वे हमारे लिए सहकारी और मददगार होने को तैयार हैं, लेकिन ऐसा करने के लिए वे आपसे भी कुछ अपेक्षा रखते हैं ।
भगवान कहते हैं कि मैं तुम्हारे सामने झुकने को तैयार हूँ, मैं तुम्हारे सामने झुक जाऊंगा, पर कुछ तुम भी तो झुको । मैं तुम्हारा भाग्य तुम्हें देने को तैयार हूँ, तुम भी तो अपना कुछ भाग्य मेरे चरणों में समर्पित करो; मैं तुम्हें तुम्हारा सारा संसार देता हूँ, तुम भी तो अपना यह छोटा-सा संसार मुझे समर्पित कर दो। तुम मानो ही मत कि यह संसार मेरा है । तुम यह मानो कि मेरा छोटा-सा घर-संसार परमात्मा का ही घर-संसार और परिवार है । ऐसा करने के लिए वे आपसे थोड़ी-सी चीज चाहते हैं । वे नहीं कहते कि तुम अपने लाखों का माल असबाब लाकर मुझे दो । वे तो कहते हैं वह तुम ही भोगो । मेरे पास ऐसे कोई भंडार नहीं हैं कि मैं उन्हें सुरक्षित रख सकूं। तुम्हारे माल की सुरक्षा तो तुम्हीं करो, मुझे तुम्हारा माल नहीं चाहिये । मुझे तो इस माल के कथित मालिक की मालकियत ही चाहिये; मुझे तो तुम्हारा अहंकार चाहिये, जिसके कारण तुमने अपने संसार अपना मान रखा है। मुझे केवल तुम्हारे अहंकार का भाव चाहिये । तुम्हारे मैं का, कर्तृत्व-भाव का समर्पण चाहिये ।
हुश्चित रहता हूँ । मुझे आने वाले कल की तनिक भी चिंता नहीं
112 | जागो मेरे पार्थ
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