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तो अपराध करता है । पाप के मायने हुए कि व्यक्ति मन में जो बुरे विचार कर रहा है, वह पाप है । अपराध के मायने हैं कि व्यक्ति मन में जो बुरे विचार कर रहा है, उनको अभिव्यक्ति देना अपराध है । अपराध, प्रकट हुआ पाप है और पाप छिपा हुआ अपराध है । पाप तो व्यक्ति दिन-रात करता है, पर अपराध दिन-रात नहीं करता । लोक व्यवहार उसे अपराध करने से बचा देता है । पाप तो मन के परिणामों के साथ होता ही रहता है । इस दृष्टि से ऐसा कौन है, जिसने जीवन में पापन किया हो, जो पापी न हो ।
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कहते हैं कि जीसस गांव के बाहर किसी पेड़ की छाया में बैठे थे कि इतने में ही देखा कि गाँव के सारे लोग एक महिला को पत्थरों से पीटते हुए चले आ रहे थे । महिला आगे-आगे दौड़ रही थी । वह महिला जीसस के पास आई और उसके चरणों में गिर गई । वह जीसस से प्रार्थना करने लगी कि प्रभु, मुझे बचाएँ । गाँव वाले भी महिला के पीछे-पीछे जीसस के पास पहुँचे। गाँव वालों ने कहा कि यह व्यभिचारिणी स्त्री है। इसने किसी के साथ अपना मुंह काला किया है । हम इसे पत्थरों से मार देना चाहते हैं । आप हमें अनुमति दें । लोगों के लिए तो यह जीसस की परीक्षा का विषय बन गया कि अगर जीसस यह कहते कि यह व्यभिचारिणी है, इसे पत्थरों से मार डालो, तो जीसस के दया और प्रेम का क्या होगा ? और अगर वे इसे बचाते हैं तो वे अनैतिकता को बढ़ावा देंगे ।
जीसस ने कहा- तुम लोग इसे पत्थर मारना चाहते हो मेरी ओर से तुम्हें कोई मनाही नहीं है। हर व्यक्ति इस नारी को पत्थर मार सकता है, लेकिन मेरा तुम लोगों से एक ही कहना है कि इस नारी को वही पत्थर मारे, जिसने अपने जीवन में - मन में भी कभी पाप नहीं किया हो ।
कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिलेगा जो पूर्णतया पाक हो, जो पूरी तरह निष्पाप हो । पाप तो हो ही जाता है । चूंकि हमें तो महामार्ग पर आगे बढ़ना है, इसलिए श्री कृष्ण एक मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं कि अपने मन को अपने हृदय प्रदेश
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ले आओ, उलट ही डालो अपने मन को । मन अगर हृदय में आ गया, तो मन स्वतः ही शान्त हो जायेगा । पापी मन हृदय के पुण्य- प्रदेश में विसर्जित हो जाएगा । नाला गंगा में उतर जाये तो वह भी गंगा की संज्ञा पा जाता है, वह भी गंगोदक हो जाता है ।
हृदय का अपना एक मार्ग होता है, अपना एक धरातल होता है । हृदय की
100 | जागो मेरे पार्थ
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