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यहाँ मीरा का मतलब छत पर खड़े होकर कृष्ण का रास्ता निहारना नहीं | अगर शब्द से मीरा को पकड़ोगे तो खो जाओगे । शब्द से मीरा को नहीं पकड़ा जा सकता। वह किसी छत पर खड़े होकर रास्ता नहीं देख रही है । यह वही योग की बात है, यह सहस्रार की भाषा है, यह भक्ति की भाषा है ।
मलूक ने गाया है
दीनदयाल सुनि जब तै, तब तै हिय में ऐसी लगी है । तेरो कहाये के जाऊँ कहां मैं, तेरे हित की पटि खेंच कसी है । तेरोई एक भरोसो मलूक को, तेरे समान न दूजो जसी है । ये हों मुरारी पुकार कहाँ, अब मेरी हँसी नहीं, तेरी हँसी है ।
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यह भक्ति का मार्ग है यानी केन्द्र में कोई और है, परिधि पर आप हैं । केन्द्र कोई बैठा हो, तो परिधि होती है । इसी को प्रार्थना कहते हैं । यही वजह है कि जो भाषा को, साधना को, समाधि को नहीं साध पाए, उन्होंने पूजा के लिए नृत्य को गहरा अर्थ दिया । नृत्य की कुछ खूबियाँ भी हैं। नृत्य की पहली खूबी तो यह है कि नृत्य करते समय प्रतीति होती है आप शरीर नहीं हैं । नृत्य का जो मूवमेंट है वह शरीर से आपका साथ छुड़ा देता है । ईसाइयों के दो सम्प्रदाय हुए एक का नाम था क्वेकर्स; दूसरे संप्रदाय का नाम था शेकर्स । शेकर्स उस संप्रदाय का नाम था जो शरीर को पूजा के समय जोर से कंपकंपाते थे । इतनी जोर से कंपकंपाते थे कि शरीर पसीना-पसीना हो जाए। क्वेकिंग का अर्थ भी वही होता है। आधुनिक विज्ञान मानता है कि विद्युत पदार्थ की रचना का आखिरी हिस्सा है, लेकिन भारतीय मनीषी पदार्थ की अंतिम इकाई ध्वनि मानते रहे हैं । अब विज्ञान भी मानता है कि ध्वनि 'मोड आफ इलेक्ट्रोसिटी' है, यानी विद्युत का ही एक प्रकार है । यह सब हृदय- प्रदेश में उतरने के प्रयोग हैं। संत अगस्टीन से किसी ने पूछा कि तुम्हारी प्रार्थना क्या है, क्या है तुम्हारी पूजा ? उसने कहा—“यस, माई लार्ड दिस इज माई वरशिप !” । स्मरण मात्र ही मेरी पूजा है । कोई भी जगत, कोई भी बात इस पूजा से खाली नहीं है। जब तक मन यहाँ तक नहीं पहुँचता, तब तक योग घटित नहीं होता ।
तुम हृदय के स्वामी बनो और मन से मुक्त होओ । हृदय भावयोग है । मन पापलिप्त रहता है । पाप आदमी नहीं करता, पाप हमेशा मन करता है। आदमी
ॐ मंत्रों की आत्मा | 99
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