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मैं हूं अपना मालिक
भारतीय संस्कृति ग्रहिंसा और अपरिग्रह की समर्थक और पोषक रही है । यहां हमें अहिंसा की चरम परिणतियां भी मिल जाएंगी और अपरिग्रह के चरम प्रतिमान भी उपलब्ध हो जाएंगे । किन्तु जहां हमें अहिंसा और अपरिग्रह के चरम प्रतिमान- मापदंड उपलब्ध होंगे वहीं, हमें हिंसा और परिग्रह के चरम उत्कर्ष भी नजर आएंगे । यही कारण है कि भारतीय संस्कृति निरन्तर जीवन के विरोधाभासों से भरी नजर आती है ।
हिंसा की दृष्टि से देखें तो यहां यज्ञ वेदी पर होने वाली हिंसा और पशुओं की बलि का विरोध करने वाले महावीर और बुद्ध हुए और दूसरी ओर उन्हीं की अहिंसा को विरासत में लेते हुए
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