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चार-पांच लोग ही वहाँ प्रार्थना कर रहे थे। उन लोगों की महारानी को देखने में कोई रुचि नहीं थी। यही कारण है कि भीड़ होने के बावजूद परमात्मा उनसे दूर रहता । परमात्मा तो आपके स्वभाव में है, आपका स्वभाव सिद्ध अधिकार है। लेकिन यह आपका दुर्भाग्य ही है कि वो आपसे दूर है ।
परमात्मा आपके भीतर है । आप उसे जितना अपने करीब समझोगे, वह उतना ही आपके निकट होगा । ताली दोनों हाथों से बजती । इसलिए परमात्मा की प्यास जगानी है तो अपने भीतर की ओर चलो। जितना भीतर चलोगे, परमात्मा तुम्हारे उतने ही निकट आता जाएगा। भले ही आप कितना ही बड़ा पद प्राप्त कर लें, उसकी प्रतिष्ठा कुर्सी तक ही सीमित रहेगी। आपने कुर्सी छोड़ी और प्रतिष्ठा गई। असली पद तो परमात्मा का है। असली प्रतिष्ठा तो उसी की है। अपनी सारी पूजी-प्रतिष्ठा देकर भी परमात्मा के समीप जा सको, तो चले जाना, यह तुम्हारी सबसे अहम् उपलब्धि होगी। परमात्मा को पा लिया तो फिर पद-प्रतिष्ठा तुम्हारे रास्ते में तुम्हारा इंतजार करते नजर आएंगे। अपने भीतर जाओ और परमात्मा को पायो, परमात्मा हो जायो । तुम्हारे पास है तुम्हारी सम्पदा, तुम्हारा परमात्मा ।
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