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________________ कोई घर का सदस्य हो, उसे सदस्य के रूप में देखने की बजाय जीवन के रूप में देखें । आपका परिवार है। पत्नी, बच्चे हैं। माता-पिता हैं । आप प्रेम भाव से जीते हैं। घर को स्वर्ग बनाकर जीते हैं। आनन्द और प्रसन्नता से जीते हैं। धर्म हमें यही तो सीख देता है । धर्म कहता है तुम क्षमा करो, नफरत न करो। यदि हम ऐसा करते हैं तो इससे अधिक गौरव की बात दूसरी न होगी। प्रार्थना हमेशा घर से, समाज से और देश से होनी चाहिए । ऐसा न हुआ तो हम प्रार्थना जरूर करेंगे, लेकिन वो अर्थहीन होगी। मैं तो जीवंतता में, अपने आप में विश्वास करता हूं। जीवन के हर पल पर विश्वास करता हूं। नास्तिक उसे कहते हैं जो भगवान पर विश्वास नहीं रखता। मैं कहता हूं असली नास्तिक तो वो है जो अपने आप पर ही विश्वास नहीं रखता। आस्तिक वो है जिसका अपने आप पर विश्वास है। नास्तिक वो है जिसका अपने आप से विश्वास उठ गया। जिस व्यक्ति को अपने आप पर विश्वास नहीं है, वो परमात्मा पर विश्वास कैसे कर सकेगा। इंसान के भीतर रहने वाले ईश्वर को पाना है तो सिवाय प्रेम के और कोई रास्ता नहीं है। किसी के मन में मीरा है तो उसे जगाएं । किसी के मन में चैतन्य महाप्रभु है तो उसे जगाएं । प्रेम की झील में, प्रेम के मानसरोवर में ही विहार हो सकता है। इसी में जीवन के प्रानन्द को प्राप्त किया जा सकता है। स्वयं के प्रति, जीवन के प्रति विश्वास और सम्मान मेरे देखे, तो परमात्मा का ही सम्मान है। विश्वास अगर श्रद्धा में तब्दील हो ( ७६ ) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003889
Book TitleSamay ki Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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