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का था । महिला ने संत को देखा तो उसने उन्हें भीतर बुला लिया । महिला ने उन्हें भोजन करवाया। भोजन करते संत का चेहरा देखते-देखते वह महिला संत के प्रति आकर्षित हो गई। उसने संत से निवेदन किया कि आप मेरे घर पर ही मेरे स्वामी बन कर रहें । संत ने कहा कि तुम्हें मेरी जरूरत जिस दिन होगी, उस दिन मैं तुम्हें अपना लूगा । संत इतना कहकर वहां से चला गया ।
वर्षों बीत गए । महिला संत की प्रतीक्षा करती रही। न जाने क्या बात हुई, महिला को कोढ़ हो गया। उस देश के राजा ने उसे देश निकाला दे दिया ताकि कोढ़ आगे न फैले । महिला प्रभु से प्रार्थना करने लगी कि जैसे मेरे साथ किया है, किसी अन्य नारी के साथ मत करना। वह प्रार्थना करने लगी कि हे भगवान ! मेरे प्राण ले लो। एकाएक उसने आत्महत्या करने का विचार किया मगर तभी उसे आवाज सुनाई दी- 'नहीं ! अब इसकी जरूरत नहीं है।'
महिला ने देखा, वही संत था, जो तीस साल पहले उसका मेहमान बना था और जिस पर वह आसक्त हो गई थी। वह बोली'तुम बहुत देर से पाए, अब मेरे पास कुछ भी नहीं बचा है ।'
संत ने कहा-'मुझे जिस चीज की जरूरत है, वो अब ही तो तुम्हारे पास है। आज तुम कोढी हो । अपनी कोढ से भरी देह मुझे दे दो।'
इतना कहकर संत ने महिला के घाव धोने शुरू कर दिए । जब कोढ का सारा मवाद निकल गया तो संत निकल पड़ा। उसके पीछे वह महिला भी निकल पड़ी, परमात्मा के श्रीचरणों में ।
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