SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महत्व 'स्वभाव' का स्वभाव के परिवर्तन का है। हमने कभी नहीं सोचा कि हमारा स्वभाव क्या है ! हमने तो हमेशा यही सोचा कि आत्मा का स्वभाव क्या है, अज्ञात का स्वभाव क्या है ? कभी यह भी तो सोचो कि आदमी का स्वभाव क्या है ? वस्तु का स्वभाव धर्म है। हमने कभी यह सोचा कि इंसान का स्वभाव क्या है ? हमने हमेशा यही सोचने का प्रयास किया है कि आत्मा का स्वभाव क्या है ? आदमी का स्वभाव क्या है ? युग को इस बारे में सोचने की जरूरत है। एक इंसान जब तक इंसान नहीं बन पाएगा, उसकी अन्तर चेतना कहां जीवित हो पाएगी। आत्मा की अनुभूति और उसका साक्षात्कार, परमात्मा की प्राप्ति तो दूर की बात है। अभी तक तो इन्सान, इन्सान तक नहीं बन पाया है। वह पहले इन्सान तो बने । मेरी समझ से एक इन्सान अगर इन्सान बन गया तो समझो ईश्वरत्व की आधी यात्रा तो पूरी हो गई। आपके जीवन की सार्थकता इसमें नहीं है कि आप अपने को 'अहं ब्रह्मास्मि' मानते चले जाएं । आपके जीवन की सार्थकता इसमें है कि आज अपने आपको इन्सान मानो और इन्सान बनकर ही ईश्वरत्व की तलाश जारी रखो। 'पशु' से ऊपर उठो और 'प्रभु' के द्वार में प्रविष्ट हो । शिखर से नीचे उतरना तो आसान है। पांव फिसलेगा तो भी नीचे आ जाओगे। लेकिन तलहटी से शिखर की ओर चढ़ना कठिन है। जो लोग एवरेस्ट पर चढ़ते हैं, वे जानते हैं कि चढ़ना कितना मुश्किल हुआ करता है। वर्षों पहले जब एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोरगे पहली बार एवरेस्ट पर चढ़े थे तो वे जानते थे कि 'चढ़ाई' आसान नहीं होती। ( ७० ) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003889
Book TitleSamay ki Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy