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________________ बत मंत्र स्वय आपका प्रणाम होगा। प्राचार्य भी आपका प्रणाम होगा और तीर्थंकर भी आपका प्रणाम होगा। जीवंत प्रणाम में परमात्मा खुद साकार रहते हैं । आपके उस प्रणाम में, नमन के विराट भाव में, एक चेतना होगी, जीवंतता होगी, एक प्राभा होगी, प्रारण होगा। प्रतिष्ठा हमेशा प्राणों की होती है। यह प्रतिष्ठा भी प्राणों से ही होती है । किसी जड़ द्वारा प्राणों की प्रतिष्ठा नहीं हो सकती। आपका प्रणाम जितना प्राणवान होगा, आपकी प्रतिष्ठा उतनी ही जीवंत होगी। इसलिए अपने आप को फैलाने का प्रयास कीजिए, प्राणों का विस्तार कीजिए। अन्तर्दृष्टि अगर विराट हो गयी तो वेद ही वेद नहीं है, पत्ती-पत्ती पर उपनिषदों के अक्षर लिखे मिलेंगे। तब मस्जिद से ही कुरान की आयतें सुनाई नहीं देंगी, चिड़ियाओं की चहचहाट में भी कुरान की आयतें और बाइबिल के गीत सुनाई दे जाएंगे। अन्तर्दृष्टि से हम कितने प्रतिष्ठित, प्राण-प्रतिष्ठित हो जाते हैं, यह सब इस बात पर निर्भर करते हैं । वैराग्य का शास्त्र कहता है कि राग निरर्थक है; वीतरागता का शास्त्र कहता है एक के राग से ऊपर उठं चलो, सबके प्रति प्रेमोन्मुख हो जाओ। अपने प्रेम का, अपनी प्रसन्नता का द्वार सबके लिए खोल दो। दृष्टि को विधेयक, पॉजिटिव बनायो । वीतराग होने का अर्थ यह नहीं है कि आप उदासीन हो जायो। सब कुछ छोड़कर जंगल में चले जानो। अगर इसी को वीतरागता मान लिया जाए तो दुनिया भर के लोग जंगल में चले जाएंगे। नतीजा यह होगा कि सारे जंगल शहर हो जाएंगे और तब शहर जंगल हो जाएंगे । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003889
Book TitleSamay ki Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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