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________________ क्योंकि पत्थर के मुकाबले वे श्रेष्ठ हैं, उनमें जान है । उनमें पत्थर से भी ज्यादा चेतना है। आपका प्रणाम एक जानवर भी स्वीकार कर ले तो फूलों के पास जाइए । उनके नूर को देखें, उन्हें गले लगाएं । जब आपकी प्रेम, मैत्री व बंधुत्व की भावना पेड़ पौधों के प्रति भी हो जाए तो समझो काफी कुछ पा लिया। . आप कभी फूलों के पास भी जाएं, उन्हें भी प्यार से सहलाएं । धरती की माटी से उठने वाली गंध का भी कभी आचमन करें। कभी झरनों के पास बैठे, कुछ वहां भी गुनगुनाएं, कुछ उनसे भी बातें करें। पर्वतमालाओं में विचरें, आप अपने काफी करीब होंगे । आपको लगेगा कि इन रूपों-आकारों के पीछे वह कौन बैठा है ? जान गया हूं मैं इस जग में, इक तुम ही तुम तो जीते हो । इन सब रूपों-पाकारों के, पीछे तुम ही तुम बसते हो । मेरे लिए तो यह सारी धरती परमात्मा का एक मन्दिर है और इस धरती पर खिले फूल, उड़ती तितलियां, बहते झरने, लहराती फसलें, यह सब उसी प्रभु के जीवंत और प्रगट-प्रत्यक्ष रूप हैं, उसकी जीवित प्रतिमाएं हैं। उसके मन्दिर सभी ठौर हैं और वह ठौर-ठौर प्रतिष्ठित है। यह हमारे भीतर 'प्रभु' का जन्म है, अपनी प्रभुता का विस्तार है। ___ अगर ऐसा होता है तो, अभी तो आपको किसी प्राचार्य की, किसी मुनि की, पंडित या विधिकारक की जरूरत पड़ती है, लेकिन फिर आप पत्थर की प्रतिमा के पास जाएंगे तो उस प्रतिमा को किया जाने वाला आपका प्रणाम उसे भी जीवित, सचेतन कर देगा। ( ६८ ) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003889
Book TitleSamay ki Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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