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________________ इसलिए जरूरी है कि मनुष्य स्वयं मन्दिर बने और भीतर जो स्वामी विराजमान है, उसका दर्शन करे । अन्तर्यामी के साथ साक्षात्कार करे । मनुष्य ही एक मन्दिर बने, हर मन्दिर से अब यह आवाज आनी चाहिये। 'क्या करेगा प्यार वो ईमान को, क्या करेगा प्यार वो भगवान को। जन्म लेकर गोद में इन्सान की, कर न पाया प्यार जो इन्सान को।' इस धरती के इन्सान को भगवान के प्यार से ज्यादा इन्सान का प्यार चाहिए। इन्सान को इन्सान का प्यार मिल जाए, इससे बढ़कर धर्म का आचरण और क्या होगा? हमारा सौभाग्य है कि हम पत्थर से बनी मूर्ति के सामने नतमस्तक हो जाते हैं और उसे भगवान स्वीकार लेते हैं, लेकिन हमारा दुर्भाग्य है कि हम जीवित मानव में परमात्मा को प्रतिष्ठित नहीं कर पाते । एक इन्सान स्वयं का इतना साधारणीकरण कर सकता है कि वह पृथ्वी के प्रत्येक जीव में परमात्मा देख सके। परमात्मा के अस्तित्व को स्वीकार कर सके। सच तो यह है कि जब एक इन्सान कमी इन्सान में भगवान को स्वीकार नहीं कर पाता तो वह पत्थर में भगवान को कैसे मान पाएगा? यह अलग बात है कि पत्थर के आगे आप सिर झकाने में नहीं हिचकिचाएंगे। इसके विपरीत कोई इन्सान सामने आ जाए तो उसे प्रणाम करने से सकुचाएँगे । मनुष्य का किसी प्रतिमा को प्रणाम करना तभी सार्थक होगा जब उसमें किसी इन्सान को सात बार प्रणाम करने की हिम्मत जुट जाएगी। हमारा पहला प्रणाम इन्सान को हो । उसके बाद विस्तार की ढेर सारी संभावनाएं हैं। आप जानवर को प्रणाम कर सकते हैं, ( ६७ ) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003889
Book TitleSamay ki Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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