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ट्र मैन, जिसकी आज्ञा से हिरोशिमा और नागासाकी पर पहला अणुबम गिराया गया, जब उससे पूछा गया कि इतने विनाश को देखकर तुम्हें कुछ लगता है ? ट्र मैन ने कहा, आज मैं चैन की नींद सोया, इतनी प्यारी और गहरी नींद वर्षों में भी नहीं ली। क्योंकि हम जीत गये।
मनुष्य का मन-मन्दिर इतना खण्डहर हो चुका है ! क्या भीतर का फानूस बिल्कुल ही बुझ गया है ? क्या थोड़ी सी भी रोशनी शेष नहीं है ? मानव जाति का एक हिस्सा 'प्रभु' होने के लिए प्रयत्नशील है, दूसरा हिस्सा ‘पशु' होने के स्तर से भी गिर गया है । पशु 'पशु' से नीचे नहीं गिर सकता, पर मनुष्य ‘पशु' से भी नीचे ! इतना विनाश ! मानव अगर आज भी न संभला, उसने अगर अपने भीतर के मन्दिर के लिए ध्यान न दिया, तो कहीं ऐसा न हो कि इक्कीसवीं सदी में हम कदम रखें, उससे पहले ही तीसरा महायुद्ध हो जाये और धरती पर महाप्रलय छा जाये ।
धर्म अहिंसा का अमृत अनुष्ठान है। यह मानवता की मुडेर पर मोहब्बत का जलता हुआ चिराग है । मैं उन मन्दिरों का अनुयायी हूँ, जो खुद मनुष्य को मन्दिर बनकर जीने का पाठ पढ़ाए। वे धर्मस्थान मानवता की नजर से उतर गये हैं, जहां से मानवता पर संगीने कोंची जाती हैं। मानव-मानव के बीच हृदयों की दूरियां बढ़ाने की कोशिशें होती हैं। हमें मानवता के मन्दिर को गिरने से बचाना चाहिये।
जिस परिवार में प्रेम नहीं है, उस परिवार द्वारा धर्म का आचरण नहीं हो सकता। जिस परिवार में मैत्री व बन्धुत्व की भावना नहीं है, उसके द्वारा मन्दिर में परमात्मा प्रतिष्ठित नहीं हो सकता ।
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