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मनुष्य के मन्दिर इसी तरह ढहते चले गए और परमात्मा के मन्दिर बनते चले गए तो एक दिन नतीजा यह होगा कि दुनिया में परमात्मा का मन्दिर एक भी नहीं होगा। हर मन्दिर एक शैतान का घर होगा । बगैर इन्सान के मन्दिरों की सुरक्षा कौन करेगा । तब मन्दिर में प्रार्थना कम विस्फोट ज्यादा होंगे । मन्दिर की चारदीवारी की ओट में आतंकवाद के कारतूस चलेंगे ।
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इस धरती पर मनुष्य 'मनुष्य' के रूप में नहीं रहा तो एक बात पक्की है, फिर परमात्मा भी परमात्मा के रूप में नहीं रहेगा । परमात्मा की सारी इज्जत मनुष्य के दम पर ही है । परमात्मा की सारी प्रार्थनाएँ इन्सान के कारण ही है । जिस दिन इन्सान जानवर बन जाएगा, उस दिन मन्दिरों में कौन जाएगा ?
दुनिया में एक भी मन्दिर ऐसा नहीं है, जिसका निर्माण जानवर ने किया हो । जानवर के साथ परमात्मा का कोई सम्बन्ध नहीं है । मन्दिर का सम्बन्ध सिर्फ इन्सान से है इसलिए वही मन्दिर बनाता है । मैं नहीं जानता कि जो इन्सान इन्सानियत से गिर गया है या गिर रहा है, उसके भीतर परमात्मा का कोई अंश विराजमान होगा ।
मनुष्य पूर्ण इकाई नहीं है । उसमें पशु भी है और प्रभु भी । मनुष्य बीच की कड़ी है । मनुष्य का पशु जगा रहेगा, तो पवित्र स्थान भी मदिरालय से होते रहेंगे और प्रभु जग जाए, तो अस्पताल भी उसके लिए गिरजाघर और मन्दिर होंगे। हजारों वर्षों के इतिहास की चर्चा न भी करें, इस सदी में दो महायुद्ध लड़े गये । दो महायुद्धों में दस करोड़ लोग देखते-ही-देखते साफ हो गये । आखिर ऐसा क्यों हुआ ? मनुष्य इतना नीचे क्यों गिरा ? क्या उसके भीतर का पशु कभी प्रभु हो पाएगा ?
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