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इतने तरह के धर्म हैं, सबकी कार्य- शैली अलग-अलग है । यहाँ तक कि जैन धर्म अकेले में ही कई तरह की शैलियां हैं । कोई दिगम्बर है कोई श्वेताम्बर । कोई खरतरगच्छीय है तो कोई कुछ और । लेकिन ध्येय सबका एक ही है, परमात्मा को पाना, परमात्मा स्वरूप हो जाना और फर्क हो सकते हैं लेकिन उनकी मूल बातें समान हैं ।
इसलिए जीवन के साथ हमारे प्रगाढ़ सम्बन्ध होने चाहिए । जीवन के हर पल पर हमारा विश्वास होना चाहिए । मृत्यु बाद तो जो मिलेगा, वो मिलेगा ही, जीवन तो आज है, जीवन को आनन्द और प्रमुदिततापूर्वक जीने से मत चूको । एक बार चूके तो समझो चूके ।
आज क्रोध करते हो तो नर्क है और प्रेम करते हो तो स्वर्ग है । मरने के बाद तो जाने स्वर्ग मिलेगा या नर्क । इसलिए आज के जीवन को स्वर्ग बनालो । तय करलो कि हर अच्छा काम पहले, बुरा बाद में । क्रोध करना है तो आज मत करो, प्रेम करलो । बुरा काम कल पर छोड़ दो। शुभ काम आज करो भले ही कैसी भी अशुभ घड़ी क्यों न हो । शुभ कार्य से वह घड़ी भी शुभ हो जाएगी । शुभ काम तो कभी भी हो जाने दो । क्रोध के लिए मुहूर्त ढूढो, शायद ऐसा मुहूर्त मिले ही नहीं और आप गलत काम करने से बच जाओ ।
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अच्छा काम करने के लिए मुहूर्त की जरूरत क्यों होनी चाहिए । मान लो आपको क्रोध आ रहा है तो उसे कल तक के लिए टाल दो, सम्भव है कल क्रोध की जरूरत ही न पड़े । क्रोध समाप्त हो जाए । इससे आप क्रोध पर विजय पाने की कला सीख जाएँगे । भले ही अगले क्षण मर जाएँ लेकिन जब तक जीवित हैं, आनन्द में समय गुजारिये । अपनी हथेली पर अमरता की मेंहदी नजर आने दीजिये ।
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