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जाएगी । आप स्वयं महावीर बन जाते हो तो महावीर की पूजा
तो हो गई समभो ।
एक बार महावीर से पूछा गया भगवन् ! आपके दो तरह के अनुयायी हैं । एक तो वो जो रोजाना धर्म सभा में आकर आपका प्रवचन सुनता है । इसके विपरीत एक वो भक्त है जो यहाँ नहीं प्राता लेकिन गरीबों की सेवा में जुटा रहता है । चारित्र्य की दृष्टि से ऊपर है । भंते ! इनमें आपका सच्चा अनुयायी कौन है ?
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महावीर मंद-मंद मुस्कुराए । फिर बोले 'सुनो ! गरीबों की सेवा करने में अपना समय और धन खर्च करने वाला मुझे अधिक प्रिय है । भले ही वो मेरे पास प्रवचन सुनने नहीं आता, लेकिन उसने तो मेरा प्रवचन अपने जीवन में क्रियान्वित किया है । जीवन में ऐसे भक्त मुझे प्रिय हैं ।
धर्म स्थान में आने, पूजा और सामायिक करने की सार्थकता तभी है जब, व्यक्ति स्वयं एक उत्सव हो जाए। हर समय प्रानन्दित रहे । इसके लिए हजार साल जीना जरूरी नहीं है । जीवन का एक पल भी आनन्द के साथ जी लो, तो समझो बेड़ा पार । मरने के बाद तो जो मिलेगा वो देखा जाएगा। अभी तो जीकर आनन्द उठाओ । जीवन के हर पल को बड़े प्रात्म-विश्वास से जियो ।
लोग धर्म करते हैं ताकि मरने के बाद गति सुधरे । मैं कहता हूँ, धर्म इसलिए करो ताकि 'यह' जीवन श्रानन्द से गुजर सके। मरने के बाद किसने देखा है । किताबों में पढ़ा होगा, लेकिन जीवन तो आज है | मरने के बाद स्वर्ग मिलेगा, इसकी क्या गारण्टी है । मरने के बाद तो दुनियां आपको 'स्वर्गीय' यूं ही बना देगी | आपने कभी सुना है कि 'नारकीय श्री सभी 'स्वर्गीय श्री ही कहते
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