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उत्थान नहीं होगा । मनुष्य सोचता है भगवान कृष्ण तो देवता थे, हम वैसे कैसे हो सकते हैं । हाथ में माला लेकर 'हरे कृष्ण' तो जप लेंगे लेकिन कृष्ण बनने का प्रयास नहीं करेंगे। हम 'महावीरायः नमः' तो कहेंगे, लेकिन उनके जैसा बनने की हमारी प्रवृत्ति नहीं होगी ।
हम भी महावीर बन सकते हैं । जरूरत है ग्रात्म शक्ति पहचानने की । महावीर भी मूलतः तो एक साधक ही थे । निर्लिप्त और ध्यान में जीने वाले साधक । अपनी वीतरागता के उत्सव में जीने वाले, जिन्होंने अपने जीवन को ज्योतिर्मय कर लिया । उन्होंने स्वयं को सूरज बनाया और उससे रोशन भी किया ।
महावीर जब चलते थे तो देवी-देवता स्वर्ण कमल नहीं बिछाते थे, अपितु जहां-जहां वे पांव रखते थे वहां-वहां कमल अपने आप उग आते थे । अगर देव आकर महावीर की सेवा करें तो यह महिमा महावीर की नहीं, उन देवताओं की है । अपने आप स्वर्ण कमल उग आना, अकाल समाप्त हो जाना, यह सब तो उनकी आमा से हुआ । इसलिए ऐसी महान आत्मा को हम वो सब न बनाएँ, जो वे थे ही नहीं ।
हम सब राम और महावीर हो सकते हैं, लेकिन केवल राम नाम जपने और पीली चदरिया प्रोढ़ने से यह नहीं होगा । हमने किसी पात्र में पानी भरकर उसे गर्म करने के लिए चूल्हे पर चढ़ा दिया है तो वह तब तक गर्म नहीं होगा जब तक कि उसके नीचे प्राग नहीं जलाई जाएगी । प्रार्थना करो या न करो, यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है । व्यक्ति को स्वयं प्रार्थना बनना होगा । केवल पूजा से ही कुछ नहीं होगा | चारित्र्य पद पाने के लिए पूजा काम नहीं आएगी । चारित्र्य - पद तो स्वयं में खोजना होगा । ऐसा होने पर हमारी पूजा स्वत: हो
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