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________________ मैंने ययाति की घटना इसलिए सुनाई ताकि यह साबित हो सके कि जब एक सम्राट की इच्छाएं भी पूरी नहीं हो सकती तो फिर आप जैसे सामान्य व्यक्ति की तो बात ही क्या है। हमारी इच्छाएं क्या कभी पूरी हो सकती हैं ? नहीं ! आदमी को इच्छाओं के प्रति सजग होना पड़ता है। इच्छाओं को पूरी करने से इच्छाएं समाप्त नहीं होती, उलटे और बढ़ जाती है। हम मन के प्रति सजग और जागरूक हैं तो मन में एक इच्छा हुई, हमने उसे तिरोहित कर दिया और विसर्जित करने के प्रयास भी किए लेकिन वो पूरी न हुई। हमने उस इच्छा को पूरा किया । तब हम सजग हुए कि जब इच्छा पूरी करने पर मन में तृप्ति नहीं हुई तो फिर कैसे तृप्ति होगी, लेकिन हमें इसका उत्तर आसानी से नहीं मिलता। जो व्यक्ति अपनी अन्तश्चेतना के प्रति, चित्त की वृत्तियों के प्रति और मन के संवेगों के प्रति जितना सजग और सचेतन रहता है; अपने आपके प्रति जितना जागरूक रहता है ; दृष्टा भाव में रहता है, उस व्यक्ति के मन में इच्छाओं का मायाजाल नहीं बन पाता । व्यक्ति के भीतर सजगता है, सम्यक् दर्शन है तो वह चाहे कुछ भी सेवन करे, उसके द्वारा तो कर्मों की निर्जरा ही होगी। एक आदमी बिना किसी सम्बोधि या बोध के क्रोध करता है तो वह क्रोध उसके लिए बन्धन का कारण बनेगा। वहीं एक दूसरा आदमी अपने ध्यान को साथ रखकर, विवेकशील होकर क्रोध करता है तो उसके कर्मों का विसर्जन हो जाएगा। वृत्तियों की निर्जरा हो जाएगी। सोये-सोये मूच्छित अवस्था में आप दान भी करोगे तो दान आपके लिए पुण्य का कारण नहीं बनेगा और जाग्रत अवस्था में मन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003889
Book TitleSamay ki Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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