________________
में, भावों में ही करुणा ले आओ तो उस करुणा से अपने आप अनन्त पुण्यों का अर्जन हो जाएगा।
प्रश्न जागरूकता का है, सजगता का है। जागरूकता के साथ यदि आपने सिगरेट भी पी ली तो निर्जरा होगी और मूच्छित अवस्था में यदि दूध भी पी लिया तो वो शराब का असर कर जाएगा। स्वयं में जागरूक होकर करोड़ों का परिग्रह कर लिया तो भी आप अपरिग्रही रह जाएंगे और मूर्छा में दो-चार कपड़े भी रख लिये तो परिग्रही कहलानोगे।
धर्म का सम्बन्ध, कर्म और ध्यान का सम्बन्ध कोई सामान रखने या उसे छोड़ने से नहीं है, वरन् उसके प्रति जागरूकता रखने से है। हम अपने प्रति जितना दृष्टा भाव रखेंगे, साक्षी भाव रखेंगे, जितने अधिक गवाह बनकर जियेंगे, हमारे भीतर का भार उतना ही हल्का हो जाएगा।
आपके कंधे पर अचानक एक मक्खी बैठ गई । आप उसे उड़ाने का प्रयास करते हैं। इस प्रयास में धर्म भी होगा और अधर्म भी । मैं बड़े कृत्यों की बात ही नहीं करता। छोटे-छोटे कृत्यों से ध्यान का गुण सिखाता हूं। कंधे पर बैठी मक्खी. को आप झपट्टा मारकर उड़ाएंगे तो यह पुण्य नहीं होगा। आप ध्यान से मक्खी को उड़ाएं तो यह पाप नहीं होगा। ऐसे उड़ाने में यदि वह मर जाए तो भी आपको अधर्म नहीं होगा। यह ध्यान है, सम्बोधि है । देख कर उड़ाना हमारी जागरूकता है ।
कर्म का बंधन, कर्म की निर्जरा कृत्य पर उतनी आधारित नहीं होती जितनी कि हमारी भाव चेतना और सजगता पर निर्भर करती है। ययाति की कथा से एक सीख तो यह मिलती है कि
( ५७ )
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org