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________________ मृत्यु बोली – 'राजन् ! मैं आई हूं तो कुछ तो लेकर जाऊँगी। हाँ, मैं इतना अवश्य कर सकती हूं कि यदि तुम्हारे बदले तुम्हारा कोई पुत्र मेरे साथ चले तो तुम्हें छोड़ा जा सकता है ।' . ययाति ने अपने पुत्रों को बुलाया। उसने एक-एक सभी से यह बात कही । उसके ६६ पुत्र तो चुप रहे, लेकिन सबसे छोटे पुत्र ने मृत्यु के साथ जाने की सहमति दी। और इस तरह राजा ययाति को सौ वर्ष का जीवन दान में मिल गया । मृत्यु उसे लेकर चली गई। दिन पर दिन बीतने लगे। राजा भूल गया कि मृत्यु आई थी और वह अपने सबसे छोटे पुत्र का जीवन जी रहा है। फिर सौ वर्ष बीत गये । मृत्यु फिर ययाति के सामने पहुंची। तब तक ययाति के सौ बेटे उम्र पूरी कर मर चुके थे और नए जीवन के सौ बेटे और हो गए थे। ययाति ने कहा- 'मेरे मन का पात्र तो अब भी रीता है और तुम फिर चली आई ? मेरी अनेक इच्छाएँ अधूरी हैं। इसलिए तुम इस बार भी मेरे किसी पुत्र को ले जायो।' इस बार जो पुत्र मृत्यु के साथ जाने को तैयार हुआ उसने जाने से पहले अपने पिता से एक प्रश्न पूछा --'पिताजी ! आपने दो सौ वर्ष का जीवन जी लिया। इस अवधि में आपने क्या अजित किया ? आपकी उपलब्धि क्या रही ? ययाति ने जवाब दिया- 'कुछ भी तो नहीं अजित किया, उपलब्धि की तो बात ही दूसरी है।' यह सुनकर पुत्र बोला ---'चलो मृत्यु ! मैं तुम्हारे साथ चलता हूं। मेरे पिता दो सौ वर्ष के जीवन में भी कोई उपलब्धि प्राप्त न कर सके तो मैं सौ वर्ष में क्या तीर मार लूगा। आज से सौ साल पहले भी तो मैं ही तुम्हारे साथ चला था, तब मेरे मन में शिकवा था कि मैंने जीवन में कुछ नहीं किया, लेकिन अब कोई शिकवा नहीं है ।' ( ५४ ) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003889
Book TitleSamay ki Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1995
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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