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सोचा - 'रोज
पास ही बैठा
है ।' सम्राट
तब गुरु ने कहा - 'सम्राट ! अब तुम वास्तव में समाधि पाने के योग्य हुए हो । पहले ढाई वर्ष तुम्हारी भीतर की भाव-निद्रा तोड़ने लग गये । अगले दिन झाडू निकालते समय सम्राट ने मुझे लठ्ठ मारता था, आज मैं झाडू की मार दूं तो ।' गुरु हंस पड़ा । वह बोला- 'झाडू मार दे, सोच क्या रहा हैरान कि उसके मन की बात गुरु को कैसे पता चली। गुरु ने कहा कि खुद को कसौटी पर इतना कसलो कि दूसरों के विचार तक आत्मसात कर सको, तभी समाधि शुरू हो पायेगी । अपनी भाव- निद्रा तोड़ोगे तभी ग्रागे का सबक शुरू होगा । यह तो उदाहरण था । वास्तविकता भी यही है ।
इसलिए कहता हूं, मेरे पास आओ अपना पात्र सीधा रखकर लाना, क्योंकि प्रौंधे पड़े पात्र में मैं कुछ भी नहीं डाल सकूँगा । अपना अहंकार घर छोड़कर प्राना, तभी तुम्हारे जीवन में कुछ घटित होने की संभावना पैदा होगी । अगर अहंकार रहा, तो तुम वह न बन पाओगे, जिसकी अपेक्षा है । तुम जो हो, वह भी रहना चाहोगे और रूपान्तरण भी चाहोगे, तो ये दोनों एक साथ नहीं हो सकेंगे । तुम्हें सचमुच तुम जो हो, वह होना है, इसके लिए 'ईगो' को मिटाना होगा, बार-बार बदलते मन को विसर्जन करना होगा ।
अन्त में आप सबके भीतर विराजमान प्रिय प्रभु को मेरे प्रणाम हैं, स्वीकार करें ।
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