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प्रभु ने कहा है कि व्यक्ति को ऐसे लोगों का सत्संग करना चाहिए जो अपने दीपक को जलाकर भीतर से ज्योतिर्मय कर चुके हैं और अब अपने दीप से दूसरों का दीप जलाने में जुटे हैं । व्यक्ति जितनी देर ज्योति के सत्संग में बैठेगा, उसका अन्तर्मन उतना ही ज्योतिर्मय हो जाएगा । जिसकी प्यास मिट चुकी है, जिन्होंने अमृत पान कर लिया है, उनके सानिध्य में बैठो, उनके सान्निध्य में जियो, तुम स्वतः ज्योतिर्मय हो जाओगे ।
आप गुरु के पास जाइये, वे बोलें तब भी ठीक और न बोलें तब भी ठीक | उनकी चुप्पी से कोई गलत अर्थ मत लगा लेना । गुरु कुछ न कहकर भी आपके जीवन को आलोकित कर सकता है । हो सकता है कि गुरु ने जो जाना, उसे प्रापको न बता सके, लेकिन उसमें इतनी क्षमता है कि भीतर-ही-भीतर अपना ज्ञान आप में स्थानान्तरित कर देगा ।
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गुरु कुछ नहीं कहकर भी बहुत कुछ कह देगा । कुछ नहीं बता - कर भी बहुत कुछ बता देगा आपको पता ही नहीं चलेगा और जीवन में रोशनी आ आएगी । गुरु का तो काम ही यही है कि वह चुपके से आपके भीतर को आलोकित कर दे । प्रापके भीतर ज्ञान की ललक जगा दे ।
गुरु का अर्थ केवल प्रवचन देना या पीला वस्त्र पहन लेना ही नहीं है । ऐसा सोचना ही अज्ञान है । एक व्यक्ति साधु बन गया और वह प्रवचन कर रहा है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वह गुरु हो गया । गुरु तो अचेतन से चैतन्य की अनन्त यात्रा है । यह तो खुद पहुँचकर औरों को पहुंचाने का उपक्रम है । सिद्ध तो बहुत हो सकते हैं, लेकिन सद्गुरु विरले लोगों के ही भाग्य में और बस में होता है । नमो सिद्धाणम् की सम्भावना तो हर युग में रहेगी, लेकिन नमो अरिहंताणम् की सम्भावना तो कभी-कभी ही होगी ।
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